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________________ नामाया व्यासादमा एकवि काप तपद यादयपदत्र ॥ आमासय॥४॥ केशमिय ६॥६॥ एकगुणं विगुणं त्रिगुणं असून प्रतिग्रह प &\ ॥२१॥ मात्र यापदा लिए गतिपथा पापाणि गापयाणि केद्र सूरा सिदहं संसारप्रनिग्रह‍ नंदा २२॥ याव नंदावर ।। सि एहसिह श्रेणिका परिकर्मा किस्पते मनुष्य का परिक १४) ( कही यशार मनुष्पश्रेणिकापरिकर्मकही रा गुणं तिगुणं असतं पडिय चकाउनेक हर बाते ही परणमाथ यह ।। हे संसारपरिग्रहे नंदा व सिहं से सि६से गियापरिकम्म सेकित मरण स्म से गितापरिक कापदादिक र पूर्वी परिकम्मे । शेषघात परिकर्म पाँच ॥ मनुष्प३६ 191 तह मनुष्य श्रलिका पशिजाए वा ॥ वो इसविहे पं पृष्टादिका इम्पारनाक इतीक हो। तं तावेवमा नयापतात जाणंदावतं मस्सबधं मेतं मस्स से पिता परिकाँ अविसेसपरिकं माईग्रा इत्पादिक सात परिकम्मामादिपहिला सातमूरिकर्माकर करनांपरिक मच्यार मैं करीस मात्परिकर्मनि परिक स्वसमय तिव६ जिम कर्मालगायतसंग्रह वहा राशीयामताल तानुयायी ॥ लामतानुयायी जाणिवा चाहे मारनेप्रति६ याया जीवना बई जोबा-जीवन शिएका र सविहारी में " इच्छेसाइंस परिकम्मा ससमतिया सिताजी विर्य बन गया मिसन तेरा त्रिश नामतन्न विष सात परिकीमिलिपा लिमिली सात परिक कालिमान किस्पते सूत्र सीयामा परिक नामक र पूर्वन० बी जबसे द ऊवश सियाणि मत्तते रशियारी। यामेव सद्दाद देश सन्नपरिक मानिस नीतिमरका बाइसे तं यरिकमालि सेकिंड ए
SR No.650013
Book TitleSamavayanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHirsundar Muni
PublisherJaiselmer
Publication Year1699
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size130 MB
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