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________________ संजमने । तिवंत असंज्ञमने विषेयरति कृष्णां विधेरति सन्तेरतिचरतिसदेयमे १० रहि [२] तसं गृद्स्थनापरिचयथी श्रवधनिक्स० ५०१२३ शेअर्थज्ञाना निवेद्यासो०मिपालादिकथन नि。स्त्रीया आपण आत्मानो हि दिमोक्षपमानोर्थ यावानाममन्याय ममता दिकरहित पन्धानसंजमवेत प्रक्वननेंविवेदितिष्टेर दे रहित परियहरहित२१. लछपाठा बिन्न सोए ममेकिंनले २१ विवि (G४ सन्ते समुद्र पाजतीर उत्तराध्ायनर एनवेश २० अरइर इस देपदी संधवे विरएआय रिया एप हा एवं परमहं१९ हिंचि यसेवेतापात्मा निजतीने अर्थगृहस्थउपाश्रयजावेनदीते इ०री जतीये वि० जेदो पर हितकर्म का कायाकरी |र्गतमतोरातालका वोन पायाच सेवेतथारा गरदि उपाश्रयसेमाम महायाने वली फासदेवपुरी यजीवनी रक्षानोकरदार तकर्मले १लागेन ही ० बीजादिक्रहित स्वागपाश्रयसेवेतेस मुँशजजती सहार जय नइज्जताई। निरूवले वाइंय संघमाई इसी दिविन्नाहिंम हाय सेहिं काएल फासिज्ज़ परीसदाइ | २२ सन्नाना निक्रियासहित अश्यांनवरीने ५० अश्यानता केवल 50 विरूपकारेनने ममदारि ज्ञानगेरहार अनतरवण्नपावी ज०जसवंत १०पा०पाय नाज्ञाना उद्योतकरे सर स्टजिम ०ग्राकाराने विषेोतकरेति मज्ञानेकरी उद्योतकरै २३ दशविधजतीधर्मनो सं०समूह વી गोव गरम देसी फत्तस्वरिय संवयं। अतरेनालधनसंसी नासइरिएवंतसिरके | २३ विदेव विकण्य निव्गतिरहित सेनसी स्था ० तरीजेंसी समुद्रपालमुनीवली | शि० श्री धर्मास्वामी श्ते को रेनंद्व जिममे श्रीम( कायादिकमापाररहित परेमन्संसाररूपीयोस संसारमा दियावैनदी एह दावीरदेवसमीपेसल पोतो तिमकश्ते क२४ | केवलीस सर्व कर्मी वि०कालो मुमो रोश्वाद वीगतिगत इतिधी समुद्राजीयध्ययनना समाप्त ॥ कवीसमा लावं निरंगणेस विमुके तरिज्ञासमान वो गागमं गए तिबेमि२२३ तिस मुद्दलीय ल अयनने विषेस्त्रीयादिकर दिन उपाश्रयनतीने से वनो सो०मोरी पुरनामा व० पसदेवएन |रा०राजानेंजन्जनले । ततेनेभन |कोसीसतिस्थानक सेवा रहने मनें अवगुण रूपनोते नवनगरवेविषे बेनानामे | करीसं० सहितर मन्दोया रहनेमधी व योजिमकीोतिमत्रार्ययोकरवातेन सोरिय उरंमिन यरे। सिरायामदिहिए व देवेशिनामे रायनरकण संजुरा १ त लीबारीमा योजनेविवेरहने झिनो से बंधकही नावि इमरान इसे दिलीनी। सो-सोरी पुरनामा आ.संतो के०रूम वास देवदेवकीनोख नगरसेवि रा०राजा सोरिय१रंमिन यरे | आसिरा ||४|| हंती रो०रोदिलीदे-देवकीत तिम दो०वेअ रम भक्ताऽवेशासी रोहिणीदेइतदा तसिऽएद विदो पुत्रा | इशाराम केसवा २ मुद्दा जो तोरा राजा मोटो रिश्वत 5
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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