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मतो | मिट सि घोर कार ॥ मारग ६ मजरे || 3भ्वलतिल वार ॥६॥विजय बुकै स बकती कर देषिकर वाला तस कर बै गइ हो। इम वितेनु पान्॥५॥ ठान॥२५॥ यो हाजिल ष में है। ॥ ॥ दिवजा घर तो ६ ली है। मन मेचि ते पाप का ले हो एद वो किमवर सबला गोमेद्र ॥१॥ जय देवक है निजना र दो।।ए तो पति-वसु जाला ॥ ज०॥ प्राकली ॥ नविकी ता रोग है। गत नावे देतो व षी रतं बादि रोकि मवर सल लागो जाय ॥ रज ॥ सब बत्रपइव काथ यो । पृथवा है। वाद्वार ॥ मैम न मा हैचिचारि ॥ ए तो जो कि नैनुसार ग्रहगोचरस जाय नै हो । लग्र करी ती मु६॥ मासदिन सयल देष नमन मै विचारै बुज॥ उजेली पुर नौ ६ णी हो ।" श्री विक मनराज पर ष जो विरुद६ रै सुषकाज ॥५॥ स्वर्ग मृत्यु पा ताल में दो विसरि योजय वास ॥ शदिक जे देवता गुलजा वै घरि उदास ॥ निजयर लीघर | तिका हो। परर मी न दाया। एकर ली जिनाचरि एक ए मृष वर्षिन जाय ॥ ७ ॥ सुरविर मुद्रमारै हो। रिग जहाजमिद दरव र्ल मुद्रा द्रां मौ॥ सुप नै पीना बीजानि फलाजगौ हतौ ॥ करि वापर उपगार पाम्पक वृतिदाघ दिवेकर वो कोई विचार जब बाया जैनी हो ॥ द्वता इति नि त। मुपनै पाएन वानी जी पर चतवतिभित १० ज॥ जा जा ति एकारण मंत्र दिकै है। कर के कोई उपाय | जिलवि६ ते जंजाल थी। बुटे श्रीविक्रम
॥