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________________ राईाया गानिजपात मानली ॥ श्रीविक्रमनुरनाद ॥ ॥ ते वाह्य ज पाप य देवनै ॥ रा ॥ कुंदिप प्रो घर मा द्वारा ॥ मारग ने डौ जा पानै ॥ 7 ॥ नृपमा घरो जाय ।। चार मिग सांधि सामि घसि ॥ ॥न व प्रभूतैौ गाय ॥ | | काल जि स एलादि सैौरा सापमा दान कारवाई. मुष बै ठ करे ॥ ॥ फ ट फुंकार |रा|२॥ तद घी उभी रहा || || विक्रम ति एट्रीज गं मारा ॥ सत सा समन मै धरै ॥ राजिम सिजैब का ज॥ ॥९३॥ वाय व सैति वसरे ॥ ॥ वादे समिली या जारामध्टा उमटीरा गु द्विराज घता घोर ! १६ दि मन्चम कै विजली ॥ ॥ थर पार ले काल जे वेतिहास वर से मालधार ॥ पतिघरते जेव्राह्मणी रा क्षणरहित कुंनार | शनि मर्दिननिजनर तार ॥॥॥ विद्वत न लागे वार ॥रा दि वाल सति घणे॥रागृद्ध उरली मीका तक रैव मनित राम है व है परनाल में न पत्र पर तिल वार ॥ ॥ प्रार कोणतही ला निरक्षर चवादिकनी वासना पञ्जा अतिजरातेत पर सिंग सुरा र दलईसक बाल पूर्व झा कडा ओ की राजा राक देना भवर्धन मानव पुना जाग्यो भाग॥ रः ॥ ६ ॥ घल वरस नोजा धनै । चार विचारे श्रम पुनामा राजद तौ ॥ नासंग यौ कि गं मोरी बबरन का प विनाली जैनामा तोदि वृत्ति के मे गये। ॥ कोश नमि के काम॥२॥ इमर्चिते तेषा पूरो ॥१२॥ जिदा उनी नर नाही ॥ पा से ही जंक गम बै॥ तिहार द्याविलंबाई में हर दमिवर 위 YUK
SR No.650003
Book TitleVikramaditya Chaupai
Original Sutra AuthorSomgani
Author
PublisherMansor
Publication Year1882
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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