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________________ बापू राय || ११ ॥ ॐ श्री या इव मरे है। ढील करि सलिगा र मामग्री हो या दिकनी ॥ काची ऊप्राजलवा उदार ॥ ९२ ॥ कष्ट पर सौ नृपजालीये है। जो तिक नै विसायनि जघर उपाय नै॥ ते तौ प्रवर मी काय ॥३॥ दालन ली एपनर भी हैं। समी राज मल्दा रं॥ लालचंद दाग के है ते सुज्यधिकार ॥९६॥६॥ वचन सुलीभरतार ना बुबा दिवार का तारिएको घनरीला देह ॥१॥ रे पाषी कि पापि वा ।। ] कैवाय राजाविक्रम विद्रोह में जाय || २ || जाए जैसे तो जली || देसि तेन रना है। माता सामगा के कुसी माह ॥ ३ ॥ पुरे राजा नाहरो ॥ नरमा मौनं मा मधुराचनैश्नवसरे वैठक प्रकार फागुमा सिमाप कात्तिण संजा। सुषमै सुति अति ने किया रंग मैन ॥ जन्म दल थियो । सीवान द्विकाय मन माने त्याजा यो पापा मुझम दिषाय ६ ॥ जय देवेपिल जाला ॥ तो नारिकु नारवा तु कविजेनी ॥ ॐ तो वमोजिवापाव।। रत्रा न कि यो सुवि चा॥ पर्तिप्रमुषध की नवि॥ किया अजी तिवार॥८॥ ॥१६मी॥ पंचमित विधमा लोग देश हो म कर ल मा यदि ॥ सा एप मृद चारो ॥ ६६द्दाम कविनलों के 3 मदसंमन्दारे रे ॥ १ ॥ यदि क सवि दजि के जिला थिट से जला लौ रे ॥ तेस व राजु दी जुदी ॥ ते दो मै ततका नौ रे ॥ २ ॥ मंत्रवि व ६ मुष उचरे॥ शैदिक सहसा घरे ॥ श्र तीकरता परै जमवा दे रे ॥३॥ निश्चल मन निजघान के तिम वलिवच १९३ 410/
SR No.650003
Book TitleVikramaditya Chaupai
Original Sutra AuthorSomgani
Author
PublisherMansor
Publication Year1882
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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