________________ कल्पमुक्तावल्यां प्रथम व्याख्याने सौधर्मेन्द्र itil अधिकारः // 37 // इदं हि कार्तिक श्रेष्ठिभवापेक्षया तथा तत्कथा / पृथिवी भूषणाख्याने नगरे च मनोरमे // आसीद्राजा प्रजापाली प्रजापालाभिधा महान् // 1 // तत्र श्रेष्ठी महा श्रेष्ठी नाम्ना कार्तिक संज्ञकः // श्राद्धस्य पश्चमी तेन प्रतिमाऽऽराधिता शतम् // 2 // तत्प्रभावाच्च लोकेऽस्मिन्पूजितोऽभूजने जने // शतक्रतु रिति ख्यातिः प्रसिद्धाऽभूत्पदे पदे // 3 // एकदा नगरे तस्मिंस्तापसो गैरिकाभिधः // मासोपवासरम्यात्मा त्वाययौ दैवयोगतः॥४॥ कार्तिकश्रेष्ठिनं त्यक्त्वा सर्वोऽपि नगरीजनः // तद्भक्तो नितमाज्जातो न लोकः पारमार्थिकः // 5 // कार्तिकोपरि रुष्टोऽसौ गैरिकामिध तापसः // सर्वे भक्ताश्च मे जाता नायं दीति बुद्धितः // 6 // पारणार्थङ्कदा राज्ञा तापसोऽसौ निमन्त्रितः // वक्रोक्त्या तापसः प्राह शृणु राजंश्च मे वचः॥ 7 // परिवेष्टा च चेत्सम्यक् श्रेष्ठी सः-कार्तिकाभिधः // तदाऽहं पारगङ्गेहे करिष्ये तव नान्यथा // 8 // स्वीकृत्यैवञ्च भूपोऽपि प्रोवाच श्रेष्ठिनम्पति // भो भोः कार्तिक ? मे गेहे भोजयाद्य च गैरिकम् // 9 // भोजयिष्यामि वश्चाज्ञां स्वीकृत्याहं धराधव ? श्रेष्ठिना भोज्यमानोऽसौ गैरिको वक्र बुद्धिमान् // 10 // मया ते नासिका छिन्ना नासिका स्वाश्च स्पृशता // चकार भूयसीञ्चेष्टां श्रेष्ठिनम्पति गैरिकः॥११॥ श्रेष्ठिना चिन्तितं स्वान्ते दीक्षितोऽहं यदा पुरा // अभविष्यं तदेदृक्षो नाभविष्यत्पराभवः // 12 // विचार्यवञ्च पुण्यात्मा गृहमागत्य चात्मनः // जग्राह भावतो दीक्षां मुनिसुव्रत स्वामिनः // 13 // // 37 //