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________________ श्री कल्पमुक्तावल्या श्री ऋषभ चरित्रम् // 402 // षण्मासावधिको वादः, प्राभूच्च गुरुशिष्ययोः, तथापि निश्चयो नाभू, द्राजा प्राह गुरुंस्ततः // 15 // सीदन्ति राजकार्याणि, मृतं वादेन साम्प्रतम् , क्रीडामात्रमिदं राजन् , प्रातर्जेष्यामि तं ध्रुवम् // 16 // द्वितीयदिससे भूपं, गुरुः प्राह धियां निधिः, यावन्ति सन्ति वस्तूनि, लभ्यन्ते कुत्रिकापणे // 17 // आदाय रोहगुप्तन्तु, परिवारसमन्वितः, कुत्रिकापणनाथस्य, समीपमगमद् गुरुः // 18 // जीवं देहि शुको दत्त, स्त्वजीवे प्रस्तरस्तथा, नोजीवे याचिते तेन, द्वयं दत्तं न चापरम् // 19 // रोहगुप्तं गुरूः प्राह, वत्स ? मुन्न निजाग्रहम्, तथापि न मुमोचैष, स्वाग्रहश्च कदाग्रही // 20 // तुर्य सिन्धुशरैः प्रश्न, निर्जितोऽपि सभान्तरे, अत्यजन् स्वाग्रहं मूढः, क्रोधितै गुरुभिस्ततः // 21 // प्रक्षिप्तं कुण्डिकाभस्म, तन्मूर्ध्नि मानदुर्धरे, सङ्घबाह्यः कृत क्षेष, गुर्वाज्ञालोपिदुर्मतिः // 22 // निझवश्च ततः षष्ठ, स्त्रैराशिकनिरुपकः, वैशेषिकमसौ चक्रे, दर्शनश्च ततः पृथक् // 23 // आर्यमहागिरेः शिष्यो, रोहगुप्त प्रदर्शितः, सूत्रे किश्चोत्तरस्थान, वृत्यादौ तु तथा न च // 24 // श्रीगप्ताचार्य पादस्य, शिष्यत्वेन निरुपितः, अस्माभिश्च तथाऽलेखि, तत्त्वविज्ञा बहुश्रुताः // 25 // म-पा-थेरेहिंतो णं उत्तरबलिस्सहेहिंतो तत्थ णं उत्तरबलिस्सहगणे नामं गणे निग्गए / तस्स णं इमाओ चत्वारिसाहाओ एवमाहिन्जन्ति तं जहा-कोसंबिया 1 मुत्तिवत्तिया 2 कोडंबाणी 3 चंदनागिरी 4 // थरेस्सण अजसुहत्थिस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था तं जहाथेरे अ अन्जरोहण भदजसे मेहगणी अ कामिड्ढी। मुहिअ सुप्पडिबुद्धे, रक्खिय तह रोहगुत्ते य // 1 // // 402 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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