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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्या // 40 // श्री ऋषभ चरित्रम् टवा. तद्यथा-पोटशालपरिव्राजकोपद्रवाः // वृश्चिक 1 सर्प 2 मूषक 3 मृगी 4 वराही 5 काकी 6 शकुनिका 7 इति सप्तविद्योपघातिकाः क्रमशः- मयूरी 1 नकुली 2 विडाली 3 व्याघी 4 सिंही 5 उलूकी 6 श्येनी 7 इति संज्ञकसप्तविद्यास्ताभिर्यवारयत् तथा-अशेषविघ्नविध्वंसि, रजोहरणमुत्तमम् , गुरुभ्यः प्राप्य मेधावी, ययौ तत्र च निर्भयः॥६॥ बलश्री नाम भूपस्य, सभायामुपसेदिवान् , संन्यासिपोदृशालेन, वादः प्रारम्भि तेन च // 7 // प्रथमं धीमता तेन, राशिद्वयं व्यवस्थितम् जीवाजीवकमेदेनः पुनयुक्त्या त्रिराशिकम् // 8 // तथाहि- देवानां त्रितयं त्रयी हुतभुजां शक्तित्रयं त्रिस्वरा, बैलोक्यं त्रिपदी त्रिपुष्करमथ त्रिब्रह्म वर्णास्त्रयः त्रैगुण्यं पुरुषत्रयी त्रयमथो सन्ध्यादिकालत्रयं, सन्ध्याना त्रितयं वचस्त्रयमथाप्यस्त्रियः संस्मृताः 1 इति सर्व प्ररुपणया, राशिवयं स्थापितवान् / स्वविद्याभिश्च तद्विद्या, विजिता युक्तिशालिना // तत्प्रयुक्तां पुनर्विद्यां. राशभी स विजित्य च // 9 // महेन भूयसाऽऽगत्य, गुरवेऽखिलमूचिवान् , श्रुत्वा च गुरवः प्रोचु, वत्स 1 वत्स 1 वरकृतम् // 10 // // किश्च // जीवोऽजीवो न वा जीवो, राशित्रयकस्थापनम् , उत्सत्रितमतो गत्वा, मिथ्यादुष्कृतमर्पय // 11 // संस्थाप्य स्वमतं पूर्व, सभायाश्च तथाविधम् , कथं स्वमुखतो भूय, स्त्वप्रमाणीकरोम्यहम् // 12 // अहङ्कारेण नो चक्रे, तथाऽयं शास्त्रगर्वितः, मतं मे सत्यमेवास्ति, प्राहेति सविधे गुरोः // 13 // सत्यवक्ता तकाचार्यः, सभायां भूभुज स्तदा, साकं तेन ययौ तत्र, सज्जनानामियं स्थितिः // 14 // // 401 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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