________________ श्री ऋषम चरित्रम् श्री कल्पमुक्तावल्या // 397 // अथ विस्तारवाचनया स्थविरावलीमाह // वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभाओ पुरओ थेरावली एवं पलोइज्जइ / विस्तरवाचनया पुनः आर्ययशोभद्राव-अग्रतः स्थविरावली एवं प्रलोक्यतेवाचनायाममुष्या, भेदाः सन्ति च भूरिशः / ज्ञेयास्ते किन्तु धीमद्भि, लेखकदोषहेतुकाः // 1 // ज्ञायन्ते स्थविराणां न, प्रायः शाखाः कुलानि च / तिरोहिताश्चतास्तानि, साम्प्रतं नामभेदतः // 2 // ॥तत्र तद्विदः प्रमाणम् // एकाचार्यस्य या चास्ति, सन्ततिः कुलमुच्यते / एककवचनाचार, मुनिवारो गणः स्मृतः // 3 // यदुक्त-तत्थ कुलं विन्नेयं, एगारिअस्स संतई जाउ / दुण्ह कुलाण मिहो, पुण साविक्खाणं गणो होइ // 1 // // भावार्थः पूर्वश्लोकेन ज्ञेयः॥ एकाचार्यसन्ताने, पुरुषाणां पृथक् पृथक, अन्वयाः सन्ति ताः शाखा, विज्ञेया शास्त्रचन्चुभिः // 1 // अथवा- आद्यो यः पुरुषश्चाप्तः, शाखास्तस्य च सन्ततिः। वैरीशाखा यथाऽस्माकंः श्री वैरिस्वामिनामतः // 2 // कुलानि तानि बोध्यानि, तत्तच्छिष्यगणस्य ये / वंशपादपजीमूता, अन्वया हि पृथक् पृथक // 3 // यथा चान्द्रकुलं चन्द्रात्-नागेन्द्रश्च नगेन्द्रतः, एवं नामानुसारेण, ज्ञेया कुलपरम्परा // 4 // म-पा तं जहा थेरस्स णं अज्जजसभहस्स तुंगियायणसगुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्या तं जहा-थेरे अज्जभदबाह पाईणसगुत्ते थेरे अज्जसंभूइविजए माढरसगुत्ते थेरस्स // 397 //