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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्यां मा जिनामतराणि / / 349 // इत्युक्ते नाभिभूषाले, ततस्ते मुदितास्त्वरा, उदकार्थ सरो जग्मू , राज्याभिषेकहेतवे // 13 // कम्पितासनशक्रोऽपि, तदैवाचार एष नः, इति कृत्वा समायात, स्तत्रासौ निर्जरान्वितः // 14 // किरीटकुण्डलैश्चान्य, विविधाम्बरभूषणैः, अभिषिञ्चति सद्राज्ये, भगवन्तं पूरन्दरः // 15 // सनीराण्यब्जपत्राणि, निधाय करसम्पुटे, युगलिकनरा दृष्टवा, भगवन्तं विषिष्मियुः // 16 // विचार्य क्षणमेतेऽथ, पादयोः स्वामिनो जलम् , चिक्षिपुर्वीक्ष्य शक्रोपि, तुष्टः संश्च व्यचिन्तयत् // 17 // विनयवन्त एतेहो, पुरुषाः सौम्यदर्शनाः, इति मत्वा च पौलस्त्यं, ज्ञपयामास वृत्रहा // 18 // १२रवियोजनविस्तीर्णी, विष्कम्भां नवयोजन, विनीताख्यां पुरी रम्यां, त्विह सम्पादयाधुना // 19 // आज्ञां लब्ध्वैव यक्षेशो, नगरी समवासयत् , रत्नरूक्ममयैः सौधैः, प्राकारैरुपशोभिताम् // 20 // ततो राज्ये महाराजः, प्रतापी ऋषभ प्रभुः, सङ्ग्रहं कृतवान् सम्यग् , गोवाजिवरदन्तिनाम् // 21 // उग्रभोगाव्यराजन्य-क्षत्रियलक्षणानि च, चत्वारि स्थापयामास, कुलानि विशदानि सः // 22 // उग्रदण्डप्रधानत्वा-१दुग्रा आरक्षका इमे / भोगाईत्वाच ते २भोगा, गुरुस्थानगता इमे // 23 // समानवयसो ज्ञेया, राजन्याः सख्यभाजिनः / शेषाश्च ४क्षत्रिया बोध्या, मुख्यप्रकृतिहेतुतः // 24 // ऋषभस्वामिनः काले, कालहान्या विशेषतः / फलानाङ्कल्पवृक्षाणामभावोऽभून्महत्तरः // 25 // अभवन् ये च इक्ष्वाका, स्ते चेक्षुरसभोजिनः / पर्णपुष्पफलाहाराः, शेषा आसंस्तदातने // 26 // // 34 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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