SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पमुक्कावल्यां प्रथम व्याख्याने | दशकल्प अधिकारः // ॐ अर्ह नमः // ॐ ह्रीं श्रीं शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः परमपज्य विश्ववंदनीय तपोनिधि निष्कलंकचारित्रचूडामणि सकलसंवेगीशिरोमणि तपागच्छाधिपति श्रीमत्पंन्यास श्रीदयाविमलजीगणिवर सद्गुरुभ्यो नमः॥ चतुर्दशपूर्वधरश्रुतकेवलि, आर्यश्रीभद्रबाहुस्वामिसमुद्धृतम् कल्पमूत्रम् परमपूज्यसकल सिद्धांतवाचस्पति अनेकसंस्कृतग्रंथप्रणेता श्रीमत्पन्यास प्रवर श्रीमुक्तिविमलगणिवर रचित ॥कल्पमुक्तावलिव्याख्याऽलंकृतम्॥ // अथ मङ्गलानि // न चैति साम्यकिल यस्य हेली, ननम्यते यत्त्रिदशैत्रिसन्ध्यम् // उपास्यते यच्च सुयोगिवृन्दैस्तदापमं तेज इहास्तु भूत्यै // 1 // लोकावतिसराहिदेहिनिवर्हन्यांहिपाथोरुह-श्वश्चच्छी विभवद्धिमोहविटपिध्वंसेन्द्रशस्रोपमः॥ सर्वानदो जगदःखहरः श्रेयस्करोऽनङ्गजि-च्छ्रीमद्वीरविभुर्विभातु सततं दधाच्छिवम्पाणिनाम् // 2 // %D
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy