SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणधरमदा श्री कल्पमुक्कावल्या // 265 // RCMORSHERBSCRESS स्तुतिपराणि चान्यानि, क्रमशो ज्ञायतामलम् / जुहुयादग्निहोत्रं हि, स्वर्गकामो नरो वरम् // 44 // विधिरेषोऽनुवादो हि, त्वद्वद्वादशमासिकः, इदं पुरुष एवास्ति, स्तुतिवाक्यमिदं स्फुटम् // 45 // क्रियते महिमाऽनेन, पुरुषस्य विशेषतः, कर्मादीनां न चाभावः, कथितः कापि लेशतः // 46 // जले विष्णु स्थले विष्णुः विष्णुः पर्वत मस्तके / सर्वभूतमयो विष्णु, स्तस्माद्विष्णुमयञ्जगत् // 47 // महिमा केवलं विष्णो, क्येिनानेन कथ्यते / अभावश्चान्यवस्तूनां, कापि नैव निरूपितः // 48 // अमूर्तस्यात्मनः साकं, मूर्तेन कर्मणा कथम् / अनुग्रहोपघातौ चायुक्तमेव पुरोदितम् // 49 // // उपघातानुग्रहौ // अमूर्तस्यापि भो विप्र, ज्ञानस्य मदिरादिना / उपघातस्तथोषध्या, दृश्यतेऽनुग्रहो महान् // 50 // जगद्वैचित्र्यमेतद्धि-कथं नाम भवेदिह / विना कर्माणि कर्मैव, कारणं सुखदुःखयोः // 51 // दिव्यप्रासादरामादि-सुखभोक्ता कियानरः, तद्विना पीडितः कश्चि-त्तस्मात्कर्मास्ति भावय // 52 // सिंहासनसमारूढः, कश्चिच्छास्ति धरामिह, भारं वहति ना कश्चिद्, भृत्यवृत्तिपरस्तथा // 53 // युक्तिमद्वचनं श्रुत्वा, वीरास्यपद्मनिर्गतम् / छिन्नसंशयसद्बुद्धिः, सशिष्यो प्रवजितस्तदा // 54 // // इति द्वितीयो गणधरः // 2 // वायुभूतिश्च तौ श्रुत्वा, दीक्षितौ शास्त्रकोविदौ / विस्मित श्चिन्तयामास, शिरोघूर्णनपूर्वकम् // 55 // // 265 / /
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy