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________________ श्री कल्प प्रभुचारित्र वर्णन मुक्तावल्यां // 242 // 0 कर्णक्षिप्तशलाकीय, उत्कृष्टोत्कृष्टसंज्ञकः, उपसर्गों महाघोरो, ज्ञायता मितिकोविदैः // 541 // निर्भयो विगत क्रोधो, विदैन्यः शैलबस्थिरः, श्रमणो भगवान् वीर, थोपसीश्च सोढवान् // 542 // __ "इत्युपसर्गोपक्रमः" मूलपाठः-नए णं समणे भगवं महावीरे अगगारे जाए, इरियासमिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभंडमत्तनिखेवणासमिए / उच्चारपासवगखेलसिंघाग-जल्लपारिद्वावणियासमिए / मणसमिए, वयसमिए कायसमिए, मणगुत्ते वयगुत्ते, कायगुत्ते गुत्ते गुर्तिदिए गुत्तभयारी अकोहे अमाणे अमाए, अलोमे संते पसंते-उवसंते परीनिव्वुढे अगासवे अममे अकिंचणे छिन्नगंथे निरुवलेवे, कंसपाई इव मुक्कतोए संखो इव निरंजणे जीवे इव अप्पडिहयगई. गगणमिव निरालंबणे वाडव्य अप्पडिबढ़े सारयसलिलं व सुद्धडियए पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे कुम्मो इव गुतिदिए, खग्गिविसाणं व एग जाए, विहग इव विप्पमुक्के भारंडपक्खीव अप्पमत्ते कुंजरो इव सोडिरे वसभो इव जायथामे सीहो इव दुद्धरिसे मंदरो इव अप्पकंपे सागरो इव गंभीरे चंदो इव सोमलेसे सुरो इव दित्ततेए, जच्चकणगं जायरुवे वसुंधरा इव सवफासविसहे सुहुययासणे इव, तेयसा जलंते नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे / सेय पडिबंधे, चउविहे पण्णते तं जहा, दबओ खित्तओ कालओ भावओ-दवओ सचित्ताऽचित्त मीसिएसु दन्वेसु / खित्तओ गामे वा नगरे वा अरणे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा नहे वा / कालओ, H T -.. - / 242 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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