________________ श्री कल्पमुकावल्या शकेन्द्रकृत जन्माभिषेकाधिकार // 16 // स्तुत्वा जिनेशञ्जननीसमीपे, पश्चान्न्यधाद्धर्षसमुत्थरोमा // शक्त्याऽस्य बिम्बश्च जहार निद्रां, मातुः सुरेशो विलसत्सुभक्तिः // 7 // उच्छीर्षभागे वरकुण्डले द्वे, क्षोमस्य युग्मश्च तथा निधाय // उल्लोचके स्वर्णककन्दकम्वै, श्रीदामरत्नाढयमसौ व्यधाच्च // 72 // द्वात्रिंशचामीकररत्नरूप्य, २वृष्टिम्विधायैष महामहेन्द्रः // सङ्कारयामास तदाऽऽभियोगि, देवः समन्ताद्वरघोषणाञ्च // 73 // श्रीमज्जिनस्याथ तदीयमातु, मनोऽशुभं यस्य विधास्यतीह // मूर्धाऽर्जुनद्रौम इवास्य सद्यः, स्फुटिष्यतीति स्वपि सप्तधाऽलम् // 74 // अक्गुष्ठमूले च सुधां निधाय, नन्दीश्वरे चाष्टकवासरीयम् // कृत्वा महश्चारु ययुनिजानि, धामानि देवा मुदमावहन्तः / / 75 // // इति देवकृतः श्रीमहावीरजन्मोत्सवः // प्रियम्बदा नाम तदा भुजिष्या, गत्वा च राज्ञे सुतजन्म मंक्षु // अचीकथद्धर्षमुखी नियोज्य, पाणी महानन्दकरञ्जगत्याः // 76 // 1 अवस्वापिनीमिति 2 सिद्धार्थराजमन्दिरे इति