________________ IISISE सगर कुण्डिनं प्रति राजहंसस्य गमनम् // SII AISII AISIlAISFII ARII IIIEI वृक्षैर्विराजितमुदीक्ष्य वनं स भैम्याः सस्मार नन्दनवनस्य विहङ्गशक्रः // 24 // क्षितिखचितविसर्पद्वजवैडूर्यरत्नप्रकरकिरणर्वादुर्विभाव्यस्थलीके।' दिशि दिशि दमयन्त्यास्तत्र पश्यन् वयस्याखिदशमपि स मेने नामसौभाग्यसारम् // 25 // किमुत भुवनं बन्दीकत्तुं हरिण्मयशृङ्खलाः 1 किमुत जनतां मोहं नेतुं विषद्रुमवीरुधः / नृपतिदुहितुः क्रीडालोलाः सखीरवलोकयन्निति चिरतरं चिन्ताचक्रं चकार स विष्किरः // 26 // तत्र केलिकमलं भ्रमयन्तीं शैशवव्यतिकरं गमयन्तीम् / विश्वलोचनचयं रमयन्तीं पश्यति स सहसा दमयन्तीम् // 27 // रूपेण काञ्चनसमुन्नतिमुद्वहन्ती तारागणैरिव वृता निकरैः सखीनाम् / सा तस्य सर्वसुरसिद्धगणाभिगम्या चित्तं चकर्ष कनकाचलचूलिकेव // 28 // तस्याः सकाशमधिगन्तुमसौ समन्तादाकाशवम गहनं प्रविगाहमानः। श्वेतं वितानमिव चारु चिरं वितन्वन् बभ्राम भूमिपतनाय पतङ्गशक्रः // 29 // इति श्रीमाणिक्यदेवसरिकृते नलायने प्रथमे उत्पत्तिस्कन्धे एकादशः सर्गः // 11 // नाASHI AISHII ASHISHII