________________ बष्टमे स्कन्चे नलस्य गजावटगमनम् // सर्गः१ // 17 // ISI RISHIANDIANSHI AISHI AMBRITAIYE आकर्ण्य तच्चमभूरिमेरीमाङ्कारनिःखनम् / द्रुतमुत्कर्णतां प्रापुः कर्णप्रावरणा अपि // 19 // स्कन्धे कुमारमाधाय तत्सेवार्थ समाययौ / न रोमकम्बलश्चक्रे कम्बलस्य परिग्रहम् // 20 // निन्येऽश्वमुखमुख्यानां किन्नराणां न किञ्चन / तेभ्यः स एव तद्गीतः प्रीतः प्रत्युत दचवान् // 21 // ततः सोऽनुययौ गङ्गां पूर्वसागरगामिनीम् / अभिषेणयितुं पूर्वा पुरस्ताद विहितामिव // 22 // अत्र नीतिविदः सर्वे नृपाश्चम्पाधिपादयः / नलं गुरुमिवायातं विनयेनोपतस्थिरे // 23 // इति दिग्विजयं कृत्वा पुरन्दरपराक्रमः / आर्यावर्तजनं प्रापदार्यावर्त्तक्रमेण सः // 24 // जय नृपवर ! वीरसेनसूनो ! जय जनरञ्जन ! मन्मथावतार!। जय जय कलिकालकाल ! नित्यं जय जय दुर्जय ! देव देवदूत ! // 25 // अक्षनिग्रहवशेन लीलया विश्वविश्वविजयं वितन्वतः। द्यूतकार ! तव कौतुकवादा कापि वृत्तिरपरैर्न गम्यते // 26 // क्रीडाकुब्जः क्रौञ्चकर्णान्तकारी पुण्यश्लोको नैपधो देवदूतः / भैमीभ" वैरसेनिः कलिमः स्तम्भोन्माथी केशिनीदुःखहर्ता // 27 // श्रेयस्कारी वाजिचित्तैकवेचा काकुत्स्थश्रीवर्द्धनो द्यूतकारी / सम्राट्मुख्यः सूर्यपाकप्रवीणः कस्याः कीर्तेर्नासि पात्रं नल ! त्वं // 28 // ISISHI-ISSIFSI ISHI+II-ISSIE // 17 //