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________________ सप्तमे कुब्जरूप स्कन्धे सर्गः३ धारिणे नले विभ्रमः / / // 163 // III-RIASIA II IIIA NEK इत्युच्चा लन्धताम्बूलः प्रणम्य स विनिर्ययौ / प्रपेदे तेन वितता प्रीतिं मीमरथोऽपि हि // 20 // तं तथागतमाकर्ण्य सकुब्जं नृपमागतम् / दमयन्ती दधौ चित्चे जनन्या सह विस्मयम् // 21 // जानालैब भुवं चाम्ब ! निर्विलम्बमयं तव / तोक्तदिवसाचं रात्रिरेवान्तरे गता // 22 // न कश्चिद् वेत्ति तं मुक्त्वा खेचरस्वामिनं विना / तुरङ्गहृदयं मन्त्र ऋतुपर्णः परोऽपि वा // 23 // वत्से ! वदसि तत् सत्यं प्राप्तो मे दुहितुः पतिः / तथापि कुब्जरूपस्य निर्णयोऽस्य विधीयताम् // 24 // तमद्य हस्तसंप्राप्तमृतुपर्णस्य सेवकम् / प्रविश्य विविधोपायैर्वितर्कयतु केशिनी // 25 // इति ताभ्यां समादिष्टा केशिनी मर्मवेदिनी / ययौ कारणदासी सा तत्र विद्याधराङ्गना // 26 // स्फुरत्पक्ष्मपुटद्वन्द्वं तच्चक्षुर्दक्षिणेतरम् / लोलत्वेऽपि नलप्राप्तौ चकार स्थिरनिश्चयम् / // 27 // महितामिन्द्रसेनेन कराङ्गुलिविलम्बिना / तां ददर्श समायान्ती साभिप्रायतया नलः // 28 // नूनं सुदैवतः श्रुत्वा मूदं मां सूपपाकिनम् / छमस्वयम्वरोदन्तो दमयन्त्या प्रपश्चितः // 29 // छलितो राजपुत्र्याहं ऋतुपर्णश्च पार्थिवः / ममाश्वहृदयनत्वं प्रियया प्रकटीकृतम् // 30 // ऋतुपणों थोत्कण्ठो वृथारोपः स्थितोऽस्म्यहम् / तस्या हास्यावुभौ जातौ शाखाभ्रष्टौ कपी इव // 31 // इयं च प्रहिता देव्या नूनमायाति केशिनी / इन्द्रसेनं च दृष्ट्रा मे जाते बाष्पाकुले दृशौ विग् वजहदयं घोरं दुर्भेयं मां नराधमम् / पुत्रदर्शनयोगेऽपि यस्य न स्निग्धता हृदि DISIAHINIIIIIIII // 163||
SR No.600449
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2001
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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