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________________ पञ्चमे स्कन्धे सर्गः१० ISSIRISHI // 118 // शकुन्तले ! महाराजं भर्तारमवबोधय / स्वेच्छावान् राजधर्मोऽपि प्रायः स्मृतिपराङ्मुखः // 17 // इत्युक्ता गुरुशिष्येण व्रीडावनतकन्धरा / सा विरेजे महादुःखात् प्रविविक्षुरिव क्षितिम् // 18 // तस्मिस्तादृशि दुद्धर्ष प्रेम्णि प्राप्ते दशामिमाम् / मम वज्रमयाः प्राणाः प्रियस्य रसनाऽथवा // 19 // परिणीतेऽपि सन्देहस्तद् वाच्यं किमतः परम् ? / हता हि सांप्रतं तावदाशा दूराधिरोहिणी // 20 // ततो दुष्मन्तकौशिक्योगौतम्याश्च परस्परम् / गम्भीरमुग्धशान्तोऽभूद् विवादः कोऽपि तत्क्षणम् // 21 // आर्यपुत्राथवा नैवं किश्चित् पौरव ! ते क्षमम् / तदा तादृशमाख्याय संप्रत्याख्यातुमीदृशम् // 22 // यत् स्यात् किश्चिदभिज्ञानं तद् भवेत् प्रत्ययस्तव / बाढं दर्शय तच्छीघ्रं नीत्या को न प्रतीयते // 23 // तर्हि त्वया तदा दत्तं नामाङ्कितमलौकिकम् / तदेतदङ्गुलीयं ते क्व नु तद् देहि दृश्यताम् // 24 // हन्त ! नास्तिक तद् यातं आर्यगौतमि किन्त्विदम् / पश्य प्रज्ञेव सोद्वेगा शून्या मे कथमङ्गुली ? // 25 // वत्से ! तत पतितं मन्ये गङ्गायामकलीयकम / शक्रावतारतीर्थस्य प्रणमन्त्या जलं तव // 26 // तानि प्रियंवदोक्तानि स्मर वा मालिनीतटे / भद्रे ! स्मृतं मया सर्व न स्मृतं च विरम्यताम् // 27 // ईदृशैः खलु नारीणां ललितस्निग्धशीतलैः / असत्यवाक्सुधासारैः प्लाव्यते विषयी जनः // 28 // हा हा मेवं महाभाग ! मुग्धात्मा कन्यकाजनः / अदृष्टव्यवहारश्च कथं मिथ्या भविष्यति? // 29 // ततः प्रकुपितश्चित्ते दुष्मन्तस्य तया गिरा / हस्तमुद्यम्य साक्षेपं क्षिप्रं शारिवोऽवदत् // 30 // दमयन्त्या आश्वासनाय चारणश्रमणैः | कथितं शाकुन्तलाख्यानकम्। ail IE5II III-IIIEIR ISII IEle IIIIII II बाबा // 118 //
SR No.600449
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2001
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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