________________ - IIEITHIN II MISSIP ISSIBILSI इत्युक्तो मुनिकन्याभ्यां मत्वा वाचैव तं विधिम् / नन्दिद्रुमतले ताभिः सह गोष्ठीमचीकरत् // 36 // नन्वदारः कुलपतिस्त पुत्री वः सखीति किम् / पालनाद् गालवस्तातो वप्ता स्यात् कौशिकः पुनः॥ 37 // तत्तपःखण्डनां कर्तुं मेनका पूर्वमाययौ / तां दृष्ट्वा च परं यद्वा किमार्यस्य निवेद्यते / // 38 // अस्तु ज्ञातं विशालाक्षी तदियं मेनकोद्भवा / अथ किं तत्परित्यक्ता प्राप्ता हि मुनिना वने // 39 // दिव्यप्रभावतस्तस्याः शुका वृत्ति वितेनिरे / शकुन्तैालिता पूर्व तेन नाम्ना शकुन्तला // 40 // आसंप्रदानतः कार्यमनया तद् मुनित्रतम् / सह वा सदृशाक्षीभिः कुरङ्गीभिनिर्विश्यति // 41 // इमां वराय कस्मैचिद् महर्षितुमिच्छति / अस्यास्तु हृदये नित्यं तपसि स्पृहयालुता // 42 // उपराजमिति श्रुत्वा प्रजल्पन्तीं प्रियंवदाम् / उत्थाय गन्तुमारेमे कुपितेव शकुन्तला // 43 // कथयिष्यामि गौतम्या इमामश्लीलवादिनीम् / इति पारिष्ठवं यान्तीमारुरोध प्रियंवदा // 44 // चण्डि ! किं लभ्यते गन्तुमधमर्णाऽसि मे यतः / वृक्षसेचनकद्वन्द्वं मम देयं तदर्पय // 45 // वस्रेण वलितां सख्या परिहासविदग्धया। तस्यास्तामनृणोकत्तुं स्वहारं नृपतिर्ददौ // 46 // साऽऽशु तद्बहुमानेन निर्मुमोन मुधैव ताम् / अमृद तेषां पुनगोष्ठी तत्तद्वार्तानुयायिनी // 47 // नृपतिरनुशकुन्तलं स कागी नृपमनुबद्धमतिः शकुन्तलापि / तदुभयमी पश्यतः म सग्यौ तदिति बभूव रतिश्चिरं चतुर्णाम् // 48 // BHI AISI AISI III AISISTEle