________________ पश्चमे स्कन्धे I ATHIINIK दमयन्ती किरातमुपदिशति // सर्गः५ // 109 // IIIHIAlalII-III ASFICIla ततोऽपि सरसाहारान् दत्त्वा जनमिमं प्रति / परोपकारवृक्षस्य जनिताऽऽर्येण मञ्जरी // 13 // असंस्तुतमसम्बद्धमकिश्चित्करमागतम् / इत्थं परिचरेत् कश्चिद् यदि न स्यात् कृपा हृदि // 14 // पितरं ना पितृव्यं वा भ्रातरं वा सहोदरम् / कमिव व्याहरामि त्वां एकयैव हि जिह्वया परोपकारशीलेन महात्मंश्चरितेन ते / तृणीकृतं महर्षीणां स्वकार्यैकफलं तपः निःशूकाः कामगृध्रा ये परदारानुरागिणः / उच्छिष्टान्नभुजोरिष्टाः क तेभ्यो हीनवृत्तयः / // 17 // किमत्र सुकृतैः सर्वैः कृतं चेत् पारदारिकम् / अपि निःशेषपापानां मूलमब्रह्म केवलम् // 18 // निन्दामूलं घृणाहेतु मृत्युद्वारं त्रपास्पदम् / तथापि मृढचित्तानां प्रीतये पारदारिकम् // 19 // कथं स वित्तमात्मीयं चौरेभ्यो रक्षितुं क्षमः / अनङ्गेन हृतं चित्तं प्रत्यानेतुं न यः प्रभुः // 20 // रक्ता या भर्तृतो मृत्युविरक्ता हन्ति च स्वयम् / त्याज्या रक्ता विरक्ताऽपि परस्त्री सर्वथा नृणाम् // 21 // लिप्यते पातकै तवा रक्तामपि परस्त्रियम् / विरक्ता रन्तुकामस्य न पारो नरकार्णवात् // 22 // स्त्रीविषानिपयःशस्त्रैः क्रीडतां कुशलं कुतः / तदात्वमृत्युदायीनि वस्तून्येतानि दुर्धियाम् // 23 // विधाय वनितावेषं विश्वास्य रहसि स्थितम् / जघान तक्षकः शङ्ख शेषकान्तानुरागिणम् // 24 // विहिताराधनक्लेशं रिसंसारसविहलम् / शशाप शूद्रगं वीरं सन्तुष्टाऽपि सरस्वती // 25 // अपि द्वादशसोपानकर्तारं नन्दिवर्द्धने / ऋषिदैत्यं निजग्राह श्रीमाता कामलम्पटम् // 26 // I II DISFILA III // 109 //