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________________ HISIsle ISI RISTIANSHIGATHI AISHI IIFIG आसाद्य विवरं तस्य प्रविश्य बलवत्तया / सवेगं दर्शयिष्यामि स्वस्वभावमरुन्तुदम् // 17 // वैदर्भीनलयोर्मध्यात परस्परवियुक्तयोः। अहं हत्वा कमप्येकं सङ्गमिष्यामि वः पुनः // 18 // इति तानात्मनो भृत्यान् कान्दिशीकान् विसृज्य सः। एक एव स्वयं शीघ्रं प्रपेदे नैषधी पुरीम् // 19 // तत्र प्रविश्य पश्यन् स विश्रामस्थानमात्मनः / त्रिकचत्वररथ्यासु चचार चरटश्चिरम् // 20 // नाससाद क्वचित् किञ्चित् कलिः परिचितं निजम् / नले स युगपद् दुःखी युगशेषः सुखासिके // 21 // निपपात पतद्दन्तो भनजानुर्महीतले / उल्लङ्घयन् सुमेध्यानि सुरस्नात्रोदकानि सः // 22 // सिद्धान्ताध्ययनवानैः शिष्याणां वाचनासु सः / उवाह सव्यथौ कौँ तप्तपुभृताविव // 23 // तुतोष कृतशृङ्गारा वारनारीर्विलोकयन् / रुरोष पुनरालोक्य नृत्यन्तीः सुरवेश्मसु // 24 // इत्थमाकुलितो मध्ये निःसृत्य नगराद् बहिः / मनोऽभिराममारामं विश्रामाय जगाम सः // 25 // तत्र द्रुमसम्हानां चैत्यपूजोपयोगिनाम् / छाया तमदहत् कामं कामार्त्तमिव कौमुदी // 26 // उपरि सकलभूभृन्मण्डलस्य स्थितेन स्वजनकमलखण्डश्रीसमुल्लासकेन / नलदिनकरनाम्ना निर्मले तत्र देशे तमस इव न कोऽपि क्वापि तस्याश्रयोऽभूत् // 27 // अथ कथमपि खेदच्छेदवाञ्च्छां दधानः कलिरलसशरीरः स्वैरसञ्चारमुक्तः। प्रचलदलसमूहैर्दत्तसङ्केतमात्रं प्रणयिनमिव दूरादक्षवृक्षं ददर्श // 28 // BIAISHINI ASHIS
SR No.600449
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2001
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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