SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दमयन्त्याः द्वितीयस्कन्धे सगः१२ देवदूतस्प नाम // // 46 // I ATHI ASHIRTHI AISHI NIS मुच्यते श्रोतुकामस्य यदर्धकथिता कथा / स एष पिबतो वारि धाराच्छेद इबान्तरा // 18 // प्रकाश्य वंशमात्मीयं नामनिहवकारिणा / अर्धवश्चनचातुर्य भवता शिक्षितं कुतः ? // 19 // हन्त ! खेदयितुं लब्धो मुग्धोऽयं भवता जनः / चकोर इव चन्द्रेण दृश्यादश्येन दुर्दिने // 20 // कचिद् गूढा क्वचिद् व्यक्ता दुस्तरा दूरगामिनी / सरस्वतीव सेयं ते देवदूत ! सरस्वती // 21 // तन्मयापि न दातव्यं स्फुटं प्रतिवचस्तव / न योग्यः कुलबालानां प्रायो वक्तुं परः पुमान् // 22 // इत्युक्त्वा विरतां सद्यो मौनमुद्रावलम्बिनीम् / वाग्भिः सानुप्रवेशाभिः प्रत्युवाच पुनर्नलः // 23 // वदामि निखिलं तत् तद् मां पृच्छसि भामिनि! / उक्तेनैव हि दूतानां वृत्तिर्वागुपजीविनाम् // 24 // त्वया विलम्ब्यमानेऽस्मिन् लीलया कार्यनिर्णये / इयत् प्रतीक्षमाणो मां कथं स्थास्यति वासवः / / 25 // लोचनानां सहस्रेण मत्पन्थानं विलोकयन् / अधुना भगवानास्ते धिग् ममौत्सुक्यमन्थरम् // 26 / / इति सानुशयप्राये तस्मिन्नुष्णं प्रजल्पति / साऽवदद् विनयाच्छीघ्रं स्वव्यलीकविशङ्किनी // 27 // को हि तेषां प्रतीक्षाणां दिक्पालानां महौजसाम् / विनयातिक्रमं कुर्याद् मृो वा पण्डितोऽपि वा ? // 28 // नमोऽस्तु मे त्रिधा तेभ्यो भगवद्भ्यो दिवानिशम् / मिथ्या मे दुष्कृतं भूयात् तद्द्त! त्वां विराध्य च // 29 // श्रुत्वाऽपि तदुदन्तं यद् न मया दत्तमुत्तरम् / तत्किकर्त्तव्यतामोहाद् न त्ववज्ञा लवादपि // 30 // तथापि कि क्वचिद् देवा भजन्ते मानुषी स्त्रियम् / अप्सरसकेलिहेलाढ्या हंसाः कोशातकीमिव / / 31 // IFIESI MISSIFISIS IEFINISHIFIFA
SR No.600449
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2001
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy