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________________ अनोपाना गुरुभक्तेिः कदम्ब शशिना 14 10 6 अत्रोपमाना / 126 गुरुभक्तेः | 137 कदम्ब 138 शनिना 148 करम चित्तो 149 व्यारव्या गृहस्थस्य गृहस्थस्य ब्रह्मापण क्षाणवृत्ती प्रसन्मस्य साम्राज्य कर्मणा कुण्डो कुष्टो 16 व्याख्या गृहस्थस्य ब्रह्मापण श्रीणवृत्ती प्रसन्नस्य साम्राज्य कर्मणां व्याख्या तपः मरभ चित्ता वर्तते स्यौषधं 113 DETTATOREDDETTA. -nam-06663050ce तप वेराग्य नपस्यापि तपस्यपि वत्तते स्यौषध जहो इक्षुलता इमा निविण्णः भङ्गिभिः मश्रुवन्तो आधारोऽरित परीक्षाक्ष स्थिरीकर्तृ कृतं CALOOCIACICADCAO सर्वमिदं इक्षुलतां इमां 1514 निविण्णः 152 मङ्गिभिः मनुवन्तो आधारोऽस्ति परीक्षार्थ स्थिरीक विश्रम्य / 167 119 122 कृद्धभूति सवमिदं कृढभूति म्यात् उपसंहार सुवणघट विरचित 123 10 स्यात् उपसंहारः सुवर्णघट विरचितं 126 विश्रस्य // 16 //
SR No.600448
Book TitleGyansarashtakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherVadilal Mohakambhai Vakil
Publication Year1962
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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