________________ आवश्यक नियुक्तेरव चूर्णिः नमस्कारनियुक्तिः नि गा. | 10031013 // 424 // * * ध्यानकार इत्यर्थः॥१००२॥ अथवाउत्ति उवओगकरणे वत्ति अपावपरिवजणे होइ। झत्ति अ झाणस्स कर उत्ति अ ओसरणा कम्मे // 10 // उपयोगपूर्वकं पापपरिवर्जनेन ध्यानारोहणेन कर्माण्यपनयन्तीत्युपाध्यायाः॥१००३ // उवज्झायनमोकारो जीवं० // 1004 // उवज्झायनमुकारो धन्नाण. // 1005 // उवज्झायनमुक्कारो | एवं०॥१००६॥ उवज्झायनमुक्कारो सव्व० चउत्थं होइ मंगलं // 1007 // गाथाचतुष्कं कण्ठ्यं // 1004-1007 // नाम ठवणासाहू दव्वसाहू अ भावाहू अ। दव्वंमि लोइआई भावंमि अ संजओ साहू // 1008 // अभिलषितमर्थ साधयतीति साधुः॥१००८॥ द्रव्यसाधूनाहघडपडरहमाईणि उ साहंता हुंति दव्वसाहुत्ति / अहवावि दवभूआते हुंती दब्बसाहुत्ति // 1009 // द्रव्यभूता भावपर्यायशून्याः॥१००९॥ निव्वाणसाहए जोए, जम्हा साहंति साहुणो / समा य सबभूएसु तम्हा ते भावसाहुणो॥१०१०॥ किं पिच्छसि साहणं तवं व नियम व संजमगुणं वा / तो वंदसि साहणं एअं मे पुच्छिओ साह // 1011 // विसयसुहनिअत्ताणं विसुद्धचारित्तनिअमजुत्ताणं / तच्चगुणसाहयाणं सदायकिच्चुज्जयाण नमो // 1.12 // असहाइ सहायत्तं करंति मे संजमं करितस्स / एएण कारणेणं नमामिऽहं सव्वसाहूणं // 1013 // * * * ** * // 424 // *