________________ आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः नमस्कारनियुक्तिः वि० गा० 986-994 // 422 // 1888888************** यथा अमृततृप्तः रसनेन्द्रियमेवाधिकृत्य इष्टविषयप्राप्त्या औत्सुक्यविनिवृत्त्या सुखदर्शनं अशेषौत्सुक्यानवृत्त्युपलक्षणार्थम् // 985 // इअ सबकालतित्ता अउलं निवाणमुवगया सिद्धा / सासयमवाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता // 986 // सिद्धपर्यायानाहसिद्धत्ति अ बुद्धत्ति अ पारगयत्ति अ परंपरगयत्ति / उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य // 987 // परम्परागताः सम्यक्त्वज्ञानचरणक्रमप्रतिपत्त्युपायमुक्तत्वात् , उन्मुक्तकर्मकवचाः॥९८७ // निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणमुक्का / अव्वाबाहं सुक्खं अणुहुंती सासयं सिद्धा // 988 // सिद्धाण नमोकारो जीवं०॥९८९॥ सिद्धाण नमुक्कारो धन्नाण // 990 // सिद्धाण नमुक्कारो एवं०॥९९१॥ सिद्धाण नमुक्कारो सव्व० बिइअं होइ मंगलं // 992 // गाथापञ्चकं सुगमं // 988-992 // नाम ठवणादविए भावंमि चउविहो उ आयरिओ। दव्वंमि एगभविआई लोइए सिप्पसत्थाई // 993 // द्रव्याचार्य एकभविकादिः, एकभविको बतायुष्कोऽभिमुखनामगोत्रश्च, भावाचार्यो लौकिकः शिल्पशास्त्रादिः-शिल्पादिग्राहकः // 993 // लोकोत्तरान् भावाचार्यानाह पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पभासंता। आयारं दंसंता आयरिआ तेण वुचंति // 994 // // 422 //