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________________ आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः // 418 // नमस्कारनियुक्तिः नि० गा० 960-966 अलोके केवलाकाशे प्रतिहताःतदानन्तर्यवृत्तिरेवप्रतिस्खलनं, नतु सम्बन्धे विघातः, लोकाग्रे च पश्चास्तिकायात्मके 959 // ईसीपन्भाराए सीआए जोअणमि लोगंतो। बारसहिं जोअणेहिं सिद्धी सब्वट्ठसिद्धाओ॥९६०॥ ईषत्प्राग्भारा-सिद्धिभूमिस्तस्याः सीताया इति भूमे म योजने लोकान्त ऊर्द्धमिति गम्यते / द्वादशभिर्योजनैः सिद्धिरूई स्यात्सर्वार्थसिद्धाद्विमानात् , अन्ये तु सिद्धिं लोकन्तलक्षणामेवाहुः, तत्त्वं जिना विदन्ति // 960 // निम्मलदगरयवण्णा तुसारगोखीरहारसरिवन्ना / उत्ताणयछत्तयसंठिआ य भणिया जिणवरेहिं // 961 // दकरजः-श्लक्ष्णोदककणिकाः॥९६१॥ एगा जोअणकोडी बायालीसं च सयसहस्साई। तीसं चेव सहस्सा दो चेव सया अउणवन्ना // 962 // पञ्चचत्वारिंशद्योजनलक्षप्रमाणक्षेत्रस्याल्पमन्यत्परिध्याधिक्यं प्रज्ञापनातोऽवसेयं // 962 // बहुमज्झदेसभागे अट्ठेव य जोअणाणि बाहल्लं / चरमंतेसु अ तणुई अंगुलऽसंखिजईभागं // 963 // बाहुल्यं-उच्चैस्त्वं, अङ्गलासङ्घवेयभागं यावत्तन्वी // 963 // गंतॄण जोअणं जोअणं तु परिहाइ अंगुलपुहुत्तं / तीसेऽवि अ पेरंता मच्छिअपत्ताउ तणुअयरा // 964 // किश्चिन्यूनमङ्गुलत्रय(नव)मिह अङ्गुलपृथक्त्वशब्देनोक्तं द्रष्टव्यं // 964 // ईसीपब्भाराए उवरिं खलु जोअणंमि जो कोसो। कोसस्स य छन्भाए सिद्धाणोगाहणा भणिआ॥९६५॥ तिनि सया तित्तीसा धणुत्तिभागो य कोसछब्भाओ। परमोगाहोऽयं तो ते कोसस्स छन्भाए // 966 // ** ज // 418 // *****
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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