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________________ आवश्यकनिर्युक्तेरव चूर्णिः नमस्कारनियुक्तिः नि० गा० 956-959 // 417 // सव्वं खवेइ तं पुण निल्लेवं किंचिं दुचरमे समए / किंचिब होइ चरमे सेलेसीए तयं वुच्छं॥७॥ मणुयगइजाइतसवायरं च पजत्तसुभगमाइज / अन्नयरवेअणीअं नराउ सुच्चं जसो नामं // 8 // संभवओ जिगनाम नराणुपुषी अ चरिमसमयंमि / सेसा जिणसंताओ दुचरिमसमयंमि निट्ठति // 9 // ओरालिआई सव्वाई चयइ विप्पजहणाहिं जं भणियं / निस्सेस तहा न जहा देसच्चाएण जइ सम्म (सो पुवं)॥१०॥ तस्सोदयआइआ (दइया भावा) भवत्तं च विणिअत्तए समयं / समत्तनाणदंसणसुहसिद्धत्ताणि सुत्तणं // 11 // उजुसेढी (दि) पडिवण्णो समयपएसंतरं अफुसमाणो / इक्कसमएण सिज्झइ अह सागारोवउत्तो सो // 12 // 955 // जह उल्ला साडीआ आसुं सुक्का विरल्लिआ संती। तह कम्मलहुअ समए वचंति जिणा समुग्घायं // 956 // आर्दा शाटिका जलेनेति गम्यते, कर्मणः-आयुष्कस्य लघुता स्तोकता तस्याः समये-भिन्नमुहूर्तप्रमाणे जिनाः केवलिनः॥ 956 // - लाउअ एरंडफले अग्गी धूमे उसू धणुविमुक्के / गइ पुवपओगेणं एवं सिद्धाणवि गईओ॥ 957 // इषुर्धनुर्विमुक्तः, अमीषां यथा गमनकाले स्वभावतो देशादिनियतैवगतिः पूर्वप्रयोगेण प्रवर्त्तते एवमेव सिद्धानामपि गतिः॥९५७।। कहिं पडिहया सिद्धा?, कहिं सिद्धा पइट्ठिया? / कहिं बोदिं चइत्ता णं?, कत्थ गंतूण सिज्झई // 958 // बोन्दिः-तनुः // 958 // अलोए पडिहया सिद्धा, लोअग्गे अ पइहिआ। इहं बोंदि चइत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झई॥९५९ / / / 11417 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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