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________________ आवश्यक नियुक्तेरक चूर्णि नमस्कारनियुक्तिः निगा R21-927 // 397 // तथाअरिहंति वंदणनमंसणाई अरिहंति पूअसक्कारं / सिद्धिगमणं च अरिहा अरहता तेण वुचंति // 921 // वन्दनं शिरसा, वस्त्रमाल्यादिजन्या पूजा, अभ्युत्थानादिः सत्कारः, तथा सिद्धिगमनं च प्रत्यहाः, अर्हन्तः॥ 921 // / देवासुरमणुएसुं अरिहा पूआ सुरुत्तमा जम्हा / अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण वुचंति // 922 // देवासुरमनुजेभ्यः पूजामर्हन्ति तद्योग्यत्वात् , सुरोत्तमत्वात् , रजो बध्यमानं कर्म // 922 // फलमाहअरहंतनमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो होइ पुण बोहिलाभाए // 923 // सहस्रशब्दोऽत्रानन्तसङ्ख्यायां // 923 // अरिहंतनमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुणताणं / हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ // 924 // अपध्यानं विस्रोतसिका // 924 / / अरहंतनमुक्कारो एवं खलु वण्णिओ महत्थुत्ति / जो मरणंमि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो // 925 // मरणे, उपाग्रे-समीपभूते // 925 // अरिहंतनमुकारो सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं // 926 // सिद्धनिक्षेपश्चतुर्दशविधः, तत्र नामस्थापनाद्रव्यसिद्धं (द्धान्) व्युदस्य शेषनिक्षेपमा(पाना)हकम्मे सिप्पे अ विजाय, मंते जोगे अ आगमे / अत्थ जत्ता अमिप्पाए तवे कम्मक्खए इय // 927 // **KA888888888888888**** // 397 // आ०चू० 34||
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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