________________ आवश्यक- नियुक्तेरव चूर्णिः नमस्कारनियुक्तिः | नि० गा. 904-912 // 395 // मनुतिष्ठन्ति // 903 // एवं समासेनार्हदादीनां मार्गप्रणयनादयो गुणा उक्ताः, अथ प्रपञ्चेनार्हतां तानाह अडवीइ देसिअत्तं तहेव निवामयां समुइंमि / छक्कायरक्खणट्ठा महगोवा तेण वुचंति // 904 // देशकत्वं कृतमर्हद्भिः, षट्कायरक्षणार्थ यतः प्रयत्नं चक्रुः॥९०४॥ आद्यद्वारमाहअडविं सपञ्चवायं वोलित्ता देसिओवएसेणं / पावंति जहिट्टपरं भवाडविपी तहा जीवा // 905 // पावंति निव्वुइपुरं जिणोवइटेण चेव मग्गेणं / अडवीइ देसिअत्तं एवं नेयं जिणिंदाणं // 906 // जह तमिह सत्यवाहं नमइ जणो तं पुरं तु गंतुमणो। परमुवगारित्तणओ निम्विग्घत्थं च भत्तीए // 907 // अरिहो उ नमुक्कारस्स भावओ खीणरागमयमोहो / मुक्खत्थीणपि जिणो तहेव जम्हा अओ अरिहा // 908 // संसाराअडवीए मिच्छत्तन्नाणमोहिअपहाए। जेहिं कयं देसिअत्तं ते अरिहंते पणिवयामि // 909 // सम्मदंसणदिट्ठो नाणेण य सुदु तेहिं उवलद्धो / चरणकरणेण पहओ निव्वाणपहो जिणिंदेहिं // 910 // पडपि गाथाः सुगमाः। निवृतिपुरं प्राप्ता इत्याहसिद्धिवसहिमुवगया निव्वाणसुहं च ते अणुप्पत्ता / सासयमव्वाबाहं पत्ता अयरामरं ठाणं // 911 // द्वितीयद्वारमाहपावंति जहा पारं संमं निजामया समुदस्स / भवजलहिस्स जिजिंदा तहेव जम्हा अओ अरिहा // 912 // प्रापयन्ति अतोऽहो नमस्कारस्य // 912 // // 395 //