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________________ आवश्यकनिर्युक्तेरव चूर्णिः भगवतः केवलोत्पत्तिः देवकृतमहिमा // 296 // VNI अत्रैवोक्तलक्षणे दिवसगणे // 536-538 // उप्पण्णंमि अणंते नटुंमि य छाउमथिए नाणे / राईए संपत्तो महसेणवणमि उजाणे // 539 // ज्ञानोत्पत्तिस्थाने कस्यापि दीक्षादि(क्षा)लाभमपश्यन्मुहूर्त्तमात्रं देवपूजां जीतमिति कृत्वा अनुभूय देशनामात्रं कृत्वा असख्येयदेवकोटीपरिवृतो देवोद्योतेन शेषाध्वानमुद्योतयन् रात्र्यां मध्यमानगर्या महसेनवनोद्यानं सम्प्राप्तः // 539 // अमरनररायमहिओ पत्तो धम्मवरचक्रवद्वित्तं / बीयं पि समोसरणं पावाए मज्झिमाए उ॥५४॥ पुनर्द्वितीयं समवसरणं पापायां मध्यमायां प्राप्त इत्यनुवर्तते, ज्ञानोत्पत्तिस्थानकृतपूजापेक्षया चास्य द्वितीयता // 540 // तत्थ किल सोमिलज्जोत्ति माहणो तस्स दिक्खकालंमि / पउरा जणजाणवया समागया जन्नवाडंमि // 541 // सोमिलार्य इति ब्राह्मणस्तस्य 'दीक्षाकाले' यागकाले 'पौराः' विशिष्टनगरनिवासिलोकाः 'जना' सामान्यलोकाः, जानपदा विषयलोकाः // 541 // अत्रान्तरे एगंते य विवित्ते उत्तरपासंमि जन्नवाडस्स / तो देवदाणविंदा करेंति महिमं जिणिंदस्स // 542 // एकान्ते च विविक्ते // 542 // अमुमेवार्थ किञ्चित्सविशेष भाष्यकार आह भवणवइवाणमंतरजोइसवासी विमणवासी य / सव्विड्डीए सपरिसा कासी नाणुप्पयामहिमं // 125 // (भाष्यम्) समवसरणवक्तव्यतां प्रपञ्चतः प्रतिपादयन्नेता द्वारगाथामाह SXXKXKKKARXX888 नि० गा० 539-542 // 296 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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