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________________ e आवश्यकनियुक्तेरव- चूर्णिः जिनचक्रिदशारान्तराणि चक्रिवासुदेवान्तराणि च नि० गा. 419-421 // 25 // सुन्न जिणो सुन्न दोणि जिणा // 2 // अनया प्रथमपङौ जिननामानि // 2 // बितियपंतिठवणा-दो चक्की सुन्न तेरस पण चक्की सुन्न चक्कि दो सुन्ना। चक्की सुन्न दु चक्की सुन्नं चक्की दु सुन्नं च // 3 // अनया द्वितीयपतो चक्रिनामानि // 3 // ततियपंतिठवणा-दस सुन्न पंच केसव पण सुन्नं केसि सुन्न केसी य। दो सुन्न केसवोऽवि य सुन्नदुगं केसव ति सुन्नं // 4 // अनया तृतीयपङ्कौ केशवनामानि // 4 // चतुर्थपङ्कौ त्रयाणामप्येषां तनुमानं, पञ्चमपतौ चायुर्मानम् , स्थापना अथ वासुदेवो यो यस्तीर्थकरकालेऽन्तरे वाऽऽसीत्तदाहपंचरहंते वंदंति केसवा पंच आणुपुब्बीए / सिज्जंस तिविट्ठाई धम्म पुरिससीहपेरंता // 419 // पश्चाहतो वन्दन्ते केशवाः, वन्दन्त इति एतेषां सम्यक्त्वख्यापनार्थ, कियतोऽर्हन्तः पञ्च, कथं? आनुपूर्वा श्रेयांसादीन् त्रिपृष्ठादयः धर्मपर्यन्तान् पुरुषसिंहपर्यन्ताः , पाठान्तरं वा 'पंचऽरिहंते वंदिसु // 419 // अरमल्लिअंतरे दुण्णि केसवा पुरिसपुंडरिअदत्ता। मुणिसुब्वयनमिअंतरि नारायण कण्हु नेमिमि // 420 // अरमल्योरन्तरे द्वौ केशवी, कौ ? पुरुषपुण्डरीकदत्तौ, मुनिसुव्रतनम्यन्तरे नारायणनाम वासुदेवः, कृष्णो नेमी // 420 // अथ चक्रिवासुदेवान्तराण्याहचक्किदुगं हरिपणगं पणगं चक्कीण केसवो चक्की केसव चक्की केसव दुचक्की केसी अ चक्की अ॥ 421 // प्रथममुक्तलक्षणं चक्रिद्वयं, ततो हरिपञ्चकं, पुनः पञ्चकं चक्रिणां, ततः केशवः, पुनश्चक्री, पुनः केशवः, पुनश्चक्री, पुनः केशवः, ततो द्वौ चक्रिणी, पुनः केशवः, ततश्चक्री // 421 // 250 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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