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________________ आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः // 24 // अयले विजए भद्दे सुप्पभे असुदंसणे / आणंदे णंदणे पउमे रामे आवि अपच्छिमे // 41 // (भाष्यम्) सुगमे // 41-42 // अथ वासुदेवशत्रूनाहआसग्गीवे तारय मेरय महुकेढवे निसुंभे अ / बलि पहराए तह रावणे अ नवमे जरासिंधू ॥४२॥(भाष्यम्) सुगमा, नवरं चतुर्थस्य मधोरेतदेव नाम, कैटभश्च तद्धाताऽतः कैटभेनोपलक्षितो मधुर्मधुकैटभः॥ 42 // एए खलु पडिसत्तू कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं / सव्वे अ चक्कजोही सब्वे अ हया सचकेहिं // 43 // (भाष्यम्) एते खलु प्रतिशत्रवः, खलुरेवार्थः, एते एव नान्ये, कीर्तिपुरुषाणां-वासुदेवानां, सर्वे चक्रयोधिनः, सर्वे च हताः स्वचः, यतस्तान्येव चक्राणि वासुदेवव्यापत्तये प्रतिक्षिप्तानि तैः, पुण्योदयाद्वासुदेवं प्रणम्य तानेव व्यापादयन्तीति // 43 // एवं प्रागुपन्यस्तगाथायां वर्णादिद्वारं परित्यज्य असंमोहार्थमुत्क्रमेण जिनादीनां नामद्वारमुक्तं, अथ गाथाद्वयेन तीर्थकरवर्णानाह पउमाभवासुपुज्जा रत्ता ससिपुप्फदंत ससिगोरा / सुव्वयनेमी काला पासो मल्ली पियंगाभा // 376 // वरकणगतविअगोरा सोलस तित्थंकरा मुणेयव्वा / एसोवण्णविभागो चउवीसाए जिणवराणं // 377 // वरतप्तकनकगौराः, शेष सुगमं // 376-377 // अथ तीर्थकृतां प्रमाणमाहउसभो पंचधणुस्सय पासो नव सत्तरयणिओ वीरो। सेसह पंच अढ य पण्णा दस पंच परिहीणा // 1 // (प्रक्षि०) ___ आद्यार्द्ध सुगम, शेषा अजिताद्या अष्टौ पञ्चाशता पश्चाशता धनुर्भिहीनाः, ततः पञ्च शीतलाद्या दशभिः दशभिर्धनुर्भिहीना, ततोऽष्टौ धर्माद्याः पञ्चभिः पञ्चभिस्तैहींनाः, परमियं गाथा हारिभद्रीयवृत्ती व्याख्याता नास्ति // 1 // अथ व्यक्तमाह वासुदेवतत्प्रतिशत्रुनामानि तीर्थकरवर्णप्रमाणानि च भा० गा० |41-43 नि० गा. 376-377 करा मुणेया। सुब्बयनेमी शेष सुगमं // 24 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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