________________ 41 शतके श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1633 // उद्देशकः 1-196 सूत्रम् 867-860 राशियुग्मशतकम्। एवं जहा पढमो उद्देसओएवं चउसुवि जुम्मेसुचत्तारि उद्देसगा भवसिद्धियसरिसा कायव्वा / सेवं भंते! रत्ति // 2 कण्हलेस्ससम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उवव०?, एएवि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारिवि उद्देसगा कायव्वा, एवं सम्मदिट्ठीसुवि भवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्वा।सेवं भंते! रत्ति जाव विहरइ ॥४१-११२॥१मिच्छादिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उवव०?, एवं एत्थवि मिच्छादिट्ठिअभिलावेणं अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा का० / सेवं भंते! रत्ति // ४१-१४०॥१कण्हपक्खियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइयाणं भंते! कओ उवव०? एवं एत्थवि अभवसि सरिसा अट्ठावीसं उद्दे० का। सेवं भंते! रत्ति ॥४१-१६८॥१सुक्कपक्खियरासीजुम्मकडजुम्मने० णं भंते! कओ उवव०?, एवं एत्थवि भवसि०सरिसा अट्ठावीसं उद्दे० भवंति, एवं एए सव्वेवि छन्नउयं उद्देसगसयं भवन्ति रासीजुम्मसयं // ४१-१९६॥जाव सुक्कलेस्सा सुक्कपक्खियरासीजुम्मकलियोगवेमाणिया जाव जइसकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति, णो इणढे समढे, सेवं भंते ! रत्ति ॥सूत्रम् 867 // __ भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ 2 त्ता वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीएवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते! सच्चे णं एसमढे जे णं तुझे वदह त्तिकटु, अपूतिवयणा खलु अरिहंता भगवंतो, समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणंभावमाणे विहरइ॥सूत्रम् ८६८॥रासीजुम्मसयंसम्मत्तं ॥४१सतं॥सव्वाए भगवईए अट्ठतीसं सतं सयाणं 138 उद्देसगाणं 1925 // ॥इति श्रीमती भगवती समाप्ता।। 8 // 1633 / /