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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1630 // 41 शतके उद्देशकः 1-196 सूत्रम् 867-868 राशियुग्मशतकम्। आयअजसेणं उवव०, 10 जइ आयअजसेणं उवव० किं आयजसं उवजीवंति आयअजसं उवजीवंति?, गोयमा! नो आयजसं उवजी० आयअजसं उवजी०, 11 जइ आयअजसं उवजी० किं सलेस्सा अलेस्सा?, गोयमा! सलेस्सा नो अलेस्सा, 12 जइ सलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया?,गोयमा! सकिरिया नो अकिरिया, 13 जइसकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति?,णो तिणढे समढे, 14 रासीजुम्मकडजुम्मअसुरकुमारा णं भंते! कओ उवव०?, जहेव नेरतिया तहेव निरवसेसं एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नवरं वणस्सइकाइया जाव असंखेना वा अणंता वा उव० सेसं एवं चेव, मणुस्सावि एवं चेव जाव नो आयजसेणं उवव० आयअजसेणं उवव०,१५ जइ आयअजसेणं उवव० किं आयजसं उवजीवंति आयअजसं उवजी०?, गोयमा! आयजसंपि उवजी० आयअजसंपिउवजी०, 16 जइ आयजसं उवजी० किंसलेस्सा अलेस्सा?, गोयमा! सलेस्सावि अलेस्सावि, 17 जइ अलेस्सा किं सकिरिया अकि०?, गोयमा! नो सकि० अकि०, 18 जइ अकि० तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति?, हंता सिझंति जाव अंतं क०, 19 जइ सलेस्सा किं सकि० अकि०?, गोयमा! सकि० नो अकि०, 20 जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति?, गोयमा! अत्थेगइया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झंति जाव अंतं करेंति, अत्थेगइया नो तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति, 21 जइ आयअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा?, गोयमा! सलेस्सा नो अलेस्सा, 22 जइसलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया?, गोयमा! सकिरिया नो अकिरिया, 23 जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति?, नो इणढे समढे। वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया / सेवं भंते! रत्ति ॥रासीजुम्मसए पढमो उद्देसओ॥ ४१-१॥१रासीजुम्मतेओयनेरइया णं भंते! कओ उवव०?, एवं चेव उद्देसओ भा० नवरं परिमाणं तिन्नि वा सत्त वा एक्कारस वा पन्नरस वा संखेजा वा असंखेज्जा वा उवव० संतरं तहेव, 2 तेणं भंते! जीवा जंसमयं तेयोगा तंसमयं कडजुम्मा जंसमयं | // 1630 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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