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________________ श्रीभगवत्यङ्ग 34 शतके उद्देशक: श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1609 // सूत्रम् 852-854 एकेन्द्रियशतानि 12 समुग्धाय त्ति, अनन्तरोपपन्नत्वेन मारणान्तिकादिसमुद्धातानामसम्भवादिति ॥२॥अणंतरोववन्नगएगिंदिया शंभंते! किंतुल्लट्ठिईए इत्यादौ, जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेति त्ति ये समायुषोऽनन्तरोपपन्नकत्वपर्यायमाश्रित्य समयमात्रस्थितिकास्तत्परतः परम्परोपपन्नकव्यपदेशात् समोपपन्नका एकत्रैव समय उत्पत्तिस्थान प्राप्तास्ते तुल्यस्थितयः समोपपन्नकत्वेन समयोगत्वात्तुल्यविशेषाधिकं कर्म प्रकुर्वन्ति तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं तुल्लट्ठिइया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति त्ति ये तु समायुषस्तथैव विषमोपपन्नका विग्रहगत्या समयादिभेदेनोत्पत्तिस्थान प्राप्तास्ते तुल्यस्थितय आयुष्कोदयवैषम्येणोत्पत्तिस्थानप्राप्तिकालवैषम्याद्विग्रहेऽपिच बन्धकत्वाद्विमात्रविशेषाधिकं कर्म प्रकुर्वन्ति, विषमस्थितिकसम्बन्धि त्वन्तिमभङ्गद्वयमनन्तरोपपन्नकानां न संभवत्यनन्तरोपपन्नकत्वे विषमस्थितेरभावात्, एतच्च गमनिकामात्रमेवेति // 5 // // 852 // शेषं सूत्रसिद्धम्, नवरं सेढिसयं ति ऋज्वायतश्रेणीप्रधानं शतं श्रेणीशतमिति // 853-854 // चतुस्त्रिंशं शतं वृत्तितः समाप्तम् // 34 // यद्गीर्दीपशिखेव खण्डिततमा गम्भीरगेहोपमग्रन्थार्थप्रचयप्रकाशनपरा सदृष्टिमोदावहा। तेषां ज्ञप्तिविनिर्जितामरगुरुप्रज्ञाश्रियां श्रेयसां,सूरीणामनुभावतःशतमिदं व्याख्यातमेवं मया // 1 // // इति श्रीमच्चन्द्रकुलनभोनभोमणिश्रीमदभयदेवाचार्यवर्यविहितविवरणयुतं श्रीमद्भगवतीवृत्तौ चतुस्त्रिंशं शतकं समाप्तम्॥ // 1609 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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