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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1599 // 34 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 851 अध: पृथ्व्यादीनामूर्ध्वादावु प०गस्स य भा० 80, एवं आउक्काइयस्स चउव्विहस्सवि भा० 160, सुहुमतेउक्काइयस्स दुविहस्सवि एवं चेव 200, 17 अप०बायरतेउक्काइएणं भंते! समयखेत्तेसमोहए २जे भविए उड्डलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्लेखेत्ते अप०सु०पु०काइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?, गोयमा! दुसमइएण वा तिसम० वा चउसम० वा विग्ग० उव०, से केणटेणं० अट्ठो जहेव रयणप्पभाए तहेव सत्त सेढीओ एवं जाव 18 अपज्जत्तबायरतेउकाइएणं भंते! समयखेत्ते समोहए 2 जे भविए उडलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते प००तेउकाइयत्ताए उवत्तए से णं भंते! सेसं तं चेव, 19 अपज्जत्तबायरतेउक्काइएणं भंते! समयखेत्ते समोहए 2 जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्तबायरतेउक्काइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! कइसमइएणं विग्ग० उव०?, गोयमा! एगसमइएण वा दुसम० वा तिसम० वा विग्ग० उव०, से केणटेणं? अट्ठो जहेव रयणप्पभाए तहेव सत्त सेढीओ, एवं पजत्तबायरतेउकाइत्ताएवि, वाउयकाइएसु वणकाइएसुय जहा पु०काइएसु उववाइओ तहेव चउक्कएणं भेदेणं उववाएयव्वो, एवं पजत्तबायरतेउकाइओवि एएसुचेव ठाणेसुउववाएयव्वो, वाउक्काइयवण काइयाणंजहेवपु०काइयत्ते उववाओतहेव भाणियव्वो। 20 अपज्जत्तसुहुमपु०काइए णंभंते! उडलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्लेखेत्ते समोहए रत्ता जे भविए अहेलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्लेखेत्ते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! कइस०?, एवं 21 उड्डलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहयाणं अहेलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते उववजयाणं सोचेव गमओ निरवसेसो भा० जाव बायरवणस्सइकाइओपज्जत्तओ बायरवणस्सइकाइएसुपज्जत्तएसु उववाइओ। 22 अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए 2 जे भविए लोगस्स पुरच्छि० चेव चरिमंते अप०सु०पु०काइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववखंति?, गोयमा! एगसमइएण वा दुसम० वा तिसम० वा चउसम० वा विग्ग० उव०, से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ एगसमइएण वा जाव उववजेज्जा?, एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ 2 // 1599 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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