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________________ 33 शतके श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1588 // अवान्तर शतक: 12 सूत्रम् 844-848 एकेन्द्रियभेदादिः ॥अथ त्रयस्त्रिंशंशतकम्॥ ॥त्रयस्त्रिंशशतके द्वादशोद्देशकः॥ द्वात्रिंशे शते नारकोद्वर्तनोक्ता, नारकाचोद्वृत्ता एकेन्द्रियादिषु नोत्पद्यन्ते, के च ते? इत्यस्यामाशङ्कायां ते प्ररूपयितव्या भवन्ति, तेषु चैकेन्द्रियास्तावत्प्ररूपणीया इत्येकेन्द्रियप्ररूपणपरं त्रयस्त्रिंशं शतं द्वादशावान्तरशतोपेतं व्याख्यायते, तस्य चेदमादिसूत्रं १कतिविहाणंभंते! एगिदिया पन्नत्ता?, गोयमा! पंचविहा एगिंदिया प० तं० पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया, 2 पुढविक्का० णं भंते! कतिविहा प०?, गोयमा! दुविहा प० तं० सुहुमपुढविकाइया य बायरपुढविकाइया य, 3 सु०पु०काइयाणं भंते! कतिविहा प०?, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पज्जत्ता सु०पु०काइया य अपज्जत्ता सु०पु०काइया य, 4 बायरपु०का० णं भंते ! कतिविहा प०?, गो० एवं चेव, स एवं आउक्काइयावि चउक्कएणं भेदेणं भाणियव्वा एवं जाव वणस्सइका०। 5 अपनत्तसु०पु०काइया णं भंते! कति कम्मप्पगडीओप०?, गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडी पं०, तं० नाणावरणिज्जंजाव अंतराइयं, 6 पज्जत्तसु०पु०काइयाणं भंते! कति कम्मप्प०प०?, गोयमा! अट्ठ कम्मप्प०प०, तंजहा-नाणावरणिज्जंजाव अंतराइयं / 7 अपज्जत्तबा०पु०काइयाणं भंते! कति कम्मप्प० प०?, गोयमा! एवं चेव 8, 8 पज्जत्तबा०पु०काइयाणं भंते! कति कम्मप्प० एवं चेव 8, एवं एएणं कमेणं जाव बा०वण काइयाणं पज्जत्तगाणंति। 9 अपज्जत्तसु०पु०काइया णं भंते! कति कम्मप्प० बंधंति?, गोयमा! सत्तविहबंधगावि अट्ठविहबंधगावि सत्त० बंधमाणा आउयवनाओ सत्त कम्मप्प० बंधंति अट्ठ बंधमाणा पडिपुन्नाओ अट्ठ कम्मप्प० बंधंति, 10 पज्जत्तसु०पु०काइया णं भंते ! कति कम्म०?, एवं चेव, एवं सव्वेजाव 11 पज्जत्तबावण काइयाणंभंते! कति कम्मप्प० बंधंति?, 8 // 1588 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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