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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1550 // 26 शतके उद्देशकः 1 सूत्रम् 812-813 नारकादीनां पापज्ञानावबन्धित्वादि पावं कम्मंचेव, एवं कण्हलेस्सेवि नीललेस्सेवि काउलेसेवि, एवं कण्हपक्खिए सुक्कप०, सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छा०, णाणी आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहि० अन्नाणी मइअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी आहारसन्नोवउत्तेजाव परिग्गहसन्नो०, सवेदए नपुंसकवेदए, सकसायी जावलोभक०, सजोगीमणजोगी वयजोगी कायजोगी, सागारोवउत्ते अणागारो०, एएसुसव्वेसु पदेसु पढमबितिया भंगा भाणियव्वा, एवं असुरकुमारस्सवि वत्तव्वया भा० नवरं तेउलेस्सा इत्थिवेयगपुरिसवेयगाय अब्भहिया नपुंसगवे० न भन्नंति सेसं तं चेव सव्वत्थ पढमबि० भंगा, एवं जाव थणियकुमारस्स, एवं पुढविका०वि आउका०वि जाव पंचिंति जोणियस्सविसव्वत्थवि पढमबि० भंगा नवरंजस्स जालेस्सा, दिट्ठीणाणं अन्नाणं वेदो जोगो यजंजस्सतं तस्स भा० सेसंतहेव, मणूसस्स जच्चेव जीवपदेवत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भा०, वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स, जोइसियस्स वेमाणियस्स एवं चेव नवरं लेस्साओ जाणियव्वाओ, सेसंतहेव भाणियव्वं / / सूत्रम् 812 // 16 जीवेणं भंते! नाणा० कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ एवं जहेव पावकम्मस्स वत्तव्वया तहेव नाणावरणिज्जस्सविभा० नवरं जीवपदे मणुस्सपदे य सकसाई जाव लोभकसाइंमि य पढमबितिया भंगा अवसेसं तं० जाव वेमा०, एवं दरिसणावरणिजेणवि दंडगो भाणियव्वो निरवसेसो॥१७ जीवे णं भंते! वेयणिज्ज़ कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ१ अत्थे० बंधी बंधइ न बंधिस्सइ 2 अत्थे० बंधि न बंधइ न बंधिस्सइ 4 सलेस्सेवि एवं चेव ततियविहूणा भंगा, कण्हलेस्से न जाव पम्हलेस्से पढमबितिया भंगा, सुक्कलेस्से ततियविहूणा भंगा, अलेस्से चरिमो भंगो, कण्हपक्खिए पढमबि० भंगा, सुक्कपक्खिया ततियवि०, एवं सम्मदिहिस्सवि, मिच्छादिहिस्स सम्मामिच्छादिट्ठिस्स य पढमबि०, णाणस्स ततियविहूणा आभिणिबोहियनाणी जाव मणपज्जवणाणी पढमबि० केवलनाणी ततियवि०, एवं नोसन्नोवउत्ते अवेदए अकसायी सागारोवउत्ते अणागारो० एएसु // 1550 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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