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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1546 // 810-811 ॥अथ षड्विंशंशतकम्॥ 26 शतके उद्देशकः१ ॥षड्विंशशतके प्रथमोद्देशकः॥ सूत्रम् व्याख्यातं पञ्चविंशतितमं शतम्, अथ षड्विंशतितममारभ्यते, अस्य चायमभिसबन्धः- अनन्तरशते नारकादिजीवा-3 जीवादीनां नामुत्पत्तिरभिहितासाच कर्मबन्धपूर्विकेति षड्विंशतितमशते मोहकर्मबन्धोऽपि विचार्यत इत्येवंसम्बन्धस्यास्यैकादशोद्देशक- पापबन्धादि प्रमाणस्य प्रत्युद्देशकं द्वारनिरूपणाय तावद्गाथामाह नमो सुयदेवयाए भगवईए। जीवा१य लेस्स 2 पक्खिय 3 दिट्ठी 4 अन्नाण 5 नाण 6 सन्नाओ७। वेय 8 कसाए 9 उवओग 10 जोग 11 एक्कारवि ठाणा ॥१॥१तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी-जीवेणं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ १बंधी बंधइण बंधिस्सइ २बंधी न बंधइ बंधिस्सइ ३बंधीन बंधइ न बंधिस्सइ 4?, गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ 1 अत्थेगतिए बंधी बंधइण बंधिस्सइ 2 अत्थेगतिएबंधीण बंधइ बंधिस्सइ 3 अत्थेगतिए बंधीण बंधइण बंधिस्सइ ४१॥२सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किंबंधी बंधइ बंधिस्सइ १बंधी बंधइण बंधिस्सइ?,पुच्छा, गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ 1 अत्थेगतिए एवं चउभंगो। 3 कण्हलेसेणंभंते! जीवे पावं कम्मं किंबंधी पुच्छा, गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ अत्थेगतिए बंधी बंधइन बंधिस्सइ एवंजाव पम्हलेसे सव्वत्थ पढमबितियभंगा, सुक्कलेस्से जाहसलेस्से तहेव चउभंगो। 4 अलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा! बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ 2 // 5 कण्हपक्खिए णं भंते! जीवे पावं 8 // 1546 // कम्मं पुच्छा, गोयमा! अत्थेगतिए बंधी पढमबितिया भंगा।६ सुक्कपक्खिएणं भंते! जीवे पुच्छा, गोयमा! चउभंगो भाणियव्वो॥ सूत्रम् 810 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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