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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1471 // खंधा सेया दव्व० अणंतगुणा 2 परमाणु० सेया दव्वट्ठयाए अणंतगुणा 3 संखेजपएसिया खंधा सेया दव्व० असंखेजगुणा 4 25 शतके असंखेजपएसिया खंधा सेया दव्व० असंखेजगुणा 5 परमाणुपो० निरेया दव्व० असंखे०६ संखेजपएसिया खंधा निरेया दव्व० उद्देशक:४ सूत्रम् संखे०७ असंखेजपएसिया खंधा निरेया दव्व० असंखे० 8 पएसट्टयाए एवं चेव नवरं परमाणुपो० अपएसट्ठयाए भाणियव्वा, छ |744-745 संखेजपएसिया खंधा निरेया पएसट्ठयाए असंखे० सेसंतंचेव, दव्वट्ठपएसट्ठयाए सव्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा निरेया दव्व०१ परमाण्वादीनां सैजत्वादि ते चेव पएस० अणंतगुणा 2 अणंतपएसिया खंधा सेया दव्व० अणंतगुणा 3 ते चेव पएस० अणंतगुणा 4 परमाणुपो० सेया दव्व० धर्मादिमध्यअपएस० अणंतगुणा 5 संखेजपएसिया खंधा सेया दव्व० असंखे०६ ते चेव पएस० असंखे०७ असंखेजपएसिया खंधा सेया प्रदेशाः दव्व० असंखे०८ ते चेव पएस० असंखे०९ परमाणुपो निरेया दव्वट्ठअपएस० असंखि०१० संखिज्जपएसिया खंधा निरेया दव्व० असंखे०११ ते चेव पएस० संखि०१२ असंखिज्जपएसिया खंधा निरेया दव्व० असंखे०१३ ते चेव पएस० असंखि०१४ / 101 परमाणुपो० णं भंते! किं देसेए सव्वेए निरेए?, गोयमा! नो देसेए सिय सव्वेए सिय निरेए, 102 दुपएसिए णं भंते! खंधे पुच्छा, गोयमा! सिय देसेए सिय निरेए एवं जाव अणंतपएसिए। 103 परमाणुपो० णं भंते! किं देसेया सव्वेया निरेया?, गोयमा! नो देसेया सव्वेयावि निरेयावि, 104 दुपएसियाणं भंते! खंधापुच्छा, गोयमा! देसेयाविसव्वेयावि निरेयावि, एवं जाव अणंतपएसिया।१०५ परमाणुपो० णं भंते! सव्वेए कालओ केवचिरं होइ?, गोयमा! ज० एवं समयं, उ० आवलियाए असंखेज्जइभागं, 106 निरेये का० के० होइ?, गोयमा! ज० एवं समयं, उ० असंखिज्जं कालं / 107 दुपएसिएणं भंते! खंधे देसेए का० के० होइ?, गोयमा! ज० एक्वं समयं, उ० आवलियाए असंखेज्जइभागं, 108 सव्वेए का० के० होइ?,गोयमा! ज० एक्वं समयं, उ० आवलियाए असंखेन्जइभार्ग, 109 सव्वेए का० के० होइ?, गोयमा! ज० एक्कं समय, उ० असंखिजंकालं, एवं जाव अणंतपएसिए। 110 परमाणुपो० णं भंते! // 1471 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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