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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1461 // 25 शतके उद्देशकः४ सूत्रम् 740 परमाण्वादीनामल्पबहुता विग्रहगत्योपत्तिस्थानं गच्छन्ति अविग्गहगइसमावन्नग त्ति अविग्रहगतिसमापन्नका विग्रहगतिनिषेधाजुगतिका अवस्थिताच, तत्र विग्रहगतिसमापन्ना गेन्दुकगत्या गच्छन्तीतिकृत्वा सर्वैजाः, अविग्रहगतिसमापन्नकास्त्ववस्थिता एवेह विवक्षिता इति संभाव्यते, ते च देहस्था एव मारणान्तिकसमुद्धाताद्देशेनेलिकागत्योत्पत्तिक्षेत्रं स्पृशन्तीति देशैजाः स्वक्षेत्रावस्थिता वा हस्तादिदेशानामेजनादिति // 37 // // 739 // उक्ता जीववक्तव्यता अथाजीववक्तव्यतामाह___३८ परमाणुपोग्गलाणं भंते! किंसंखेन्जा असंखेज्जा अणंता?, गोयमा! नोसंखेजा नो असंखेजा अणंता, एवंजाव अणंतपएसिया खंधा / 39 एगपएसोगाढा णं भंते! पोग्गला किं संखेज्जा असंखेज्जा अणंता?, एवं चेव, एवं जाव असंखेजपएसोगाढा। 40 एगसमयठितीया णं भंते! पो० किं संखेजा०?,एवं चेव, एवं जाव असंखेजसमयट्ठितीया। 41 एगगुणकालगाणं भंते! पो० किं संखेजा०?, एवं चेव, एवं जाव अणंतगुणकालगा, एवं अवसेसावि वण्णगंधरसफासा णेयव्वा जाव अणंतगुणलुक्खत्ति / 42 एएसि णं भंते! परमाणुपो० दुपएसियाण य खंधाणं दव्वट्ठयाए कयरे 2 हिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा वि०?, गोयमा! दुपएसिएहिंतो खंधेहिंतो परमाणुपो० दव्व० बहुगा, 43 एएसिणं भंते! दुपएसियाणं तिप्पएसाण य खंधाणं दव्व० कयरे 2 हितो बहुया०?, गोयमा! तिपएसियखंधेहितो दुपएसियाखंधा दव्व० बहुया, एवं एएणंगमएणंजाव दसप०हिंतो खंधेहितो नवपएसिया खंधा दव्व० बहुया। 44 एएसिणं भंते! दसपएसिए पुच्छा गोयमा! दसप०हिंतो खंधेहितो संखेजपएसिया खंधा दव्व० बहुया, 45 एएसि णं भंते! संखेज० पुच्छा, गोयमा! संखेजप०हिंतो खंधेहितो असंखेज्जपएसिया खंधा दव्य० बहुया, 46 एएसि णं भंते! असंखेज० पुच्छा, गो०! अणंतप०हिंतो खंधेहितो असंखेजपएसिया खंधा दव्व० बहुया, 47 एएसिणं भंते! परमाणुपोग्गलाणं दुपएसियाण य खंधाणं पएसट्ठयाए कयरे 2 हितो बहुया?, गोयमा! परमाणुपो हिंतो दुपएसिया खंधा पएस० बहुया, एवं एएणं // 1461 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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