SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1390 // 24 शतके उद्देशक: 17-1819-20 सूत्रम् 708-711 विकलोत्पादः जेभविएपंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उवव० सेणंभंते! केवइकालट्ठितिएसु उवव०?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुत्तहितीएसु उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु उवव०, 4 ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उवव०?, एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया नवरं संघयणे पोग्गला अणिट्ठा अकंता जाव परिणमंति, ओगाहणा दुविहा प०,तं भवधारणिज्जा उत्तरवेउब्विया, तत्थ णंजा सा भवधारणिज्जा सा ज० अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उ० सत्त धणूई तिन्नि रयणीओ छच्चंगुलाई, तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा ज० अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उ० पन्नरस धणूई अड्डाइजाओ रयणीओ, 5 तेसिणं भंते! जीवाणं सरीरगा किंसंठिया प०?, गोयमा! दुविहा पं०, तं. भवधारणि० उत्तरवेव्विया य तत्थ णं जे ते भव० ते हंडसंठिया प०, तत्थ णं जे ते उत्तरवेउव्विया तेवि हुंडसंठिता प०, एगा काउले०प०, समुग्घाया चत्तारि, णो इत्थि०, णो पुरिसवेदगा, णपुंसगवेदगा, ठिती ज० दसवाससहस्साई, उ० सागरोपमं एवं अणुबंधोवि, सेसंतहेव, भवादेसेणंज० दोभवग्गहणाई, उ० अट्ठ भवग्ग० कालादे०जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुत्तमन्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं एवतियं०, 6 सो चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो ज० अंतोमुत्तट्टितीएसुउववन्नो, उ०वि अंतो० अवसेसंतहेव, नवरं काला० ज० तहेव, उ० चत्तारि सागरोवमाइंचउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई एवतियं कालं 2, एवं सेसावि सत्त गमगा भाणियव्वा जहेव नेरइयउद्देसए सन्निपंचिंदिएहिं समंणेरइयाणं मज्झिमएसु य तिसुवि गमएसुपच्छिमएसुतिसुवि गमएसुठितिणाणत्तं भवति, सेसंतंचेव सव्वत्थ ठिति संवेहंच जाणेजा 9 // 7 सक्करप्पभापुढविनेरइए णंभंते! जे भविए एवं जहा रयणप्पभाए णव गमका तहेव सक्करप्पभाएवि, नवरं सरीरोगाहणा जहा ओगाहणासंठाणे तिन्निणाणा तिन्नि अन्नाणा नियमं ठिती अणुबंधा पुव्वभणिया, एवंणवविगमगा उवजुंजिऊण भाणियव्वा, एवं जाव छट्ठपुढवी, नवरं ओगाहणा लेस्सा ठिति अणुबंधो संवेहो य जाणियव्वा, 8 अहेसत्तमपुढवीनेरइएणं भंते! जे भविए एवं चेवणव गमगाणवरं ओगाहणा लेस्सा // 1390 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy