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________________ 21 शतके वर्ग:१ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1333 // उद्देशकः१ सूत्रम् 688 शालीमूलोद्देशक: ॥अथ एकविंशंशतकम्॥ ॥एकविंशशतके प्रथमोद्देशकः॥ व्याख्यातं विंशतितमशतम्, अथावसरायातमेकविंशतितममारभ्यते, अस्य चादावेवोद्देशकवर्गसङ्गहायेयं गाथा सालि कल अयसि वंसे इक्खूदन्भे य दब्भ तुलसी य / अट्ठए दस वग्गा असीतिं पुण होंति उद्देसा // 1 // १रायगिहे जाव एवं वयासी- अह भंते! साली वीही गोधूमजवजवाणं एएसिणं भंते! जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उव० किं नेरइएहिंतो उव० तिरि० मणु० देव० जहा वक्वंतीए तहेव उववाओ नवरं देववजं, 2 ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववखंति?, गोयमा! जहन्नेणं एक्को वादोवा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेजावा उव०, अवहारोजहा उप्पलुद्देसे, 3 तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा प०?, गोयमा! ज० अंगुलस्स असंखेजइभागं, उ० धणुहपुहुत्तं, 4 ते णं भंते जीवा! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधगा अबंधगा? जहा उप्पलुद्देसे, एवं वेदेवि उदएवि उदीरणाएवि।५ तेणं भंते! जीवा किं कण्हलेस्सा नील० काउ० छव्वीसं भंगा दिट्ठी जाव इंदिया जहा उप्पलुद्देसे, 6 ते णं भंते! सालीवीही गोधूम जवजवगमूलगजीवे कालओ केवचिरं होति?, गोयमा! ज० अंतोमु०, उ० असंखेनं कालं // 7 से णं भंते! साली वाही गोधूमजवजवगमूलगजीवे पुढवीजीवे पुणरवि सालीवीही जाव जवजवगमूलगजीवे केवतियं कालं सेवेज्जा?, के० कालं गतिरागतिं करिज्जा?, एवं जहा उप्पलुद्देसे, एएणं अभिलावेणंजाव मणुस्सजीवे आहारोजहा उप्पलुद्देसे ठितीज० अंतो० उ० वासपुहुत्तं समुग्घायसमोहया उव्वट्टणा यजहा उप्पलुद्देसे। 8 अह भंते! सव्वपाणाजाव सव्वसत्ता साली वीही जाव जवजवगमूलगजीवत्ताए उववन्नपुव्वा?, हंता गोयमा! असतिं अदुवा अणंतनुत्तो। सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 688 // 21-1 // 88808 388888888888880
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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