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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ / / 1326 // किं आयकम्मुणा उववनंति?, परकम्मुणा उवव०? गो! आयक० उवव०, नो परक० उवव० एवं जाव वेमाणि०, एवं २०शतके उव्वट्टणादंडओवि। 8 नेणंभंते! किं आयप्पओगेणं उववज्जइ परप्पओगेणं उवव०?, गोयमा! आयप्पओगेणं उव०, नो परप्पयोगेणं उद्देशक: 10 सूत्रम् 686 उ० एवं जाव वेमाणि०, एवं उव्वट्टणादंडओवि।सूत्रम् 686 // सोपक्रमेतरा नेरइए इत्यादि, आओवक्कमेणं उववजंति त्ति आत्मना स्वयमेवायुष उपक्रम आत्मोपक्रमस्तेन मृत्वेति शेषः, उत्पद्यन्ते / जीवा आत्मोपनारकाः यथा श्रेणिकः, परोपक्रमेण परकृतमरणेन यथा कूणिकः, निरुपक्रमेण उपक्रमणाभावेन यथा कालशौकरिकः यतः क्रमोत्पादादि सोपक्रमायुष्का इतरे च तत्रोत्पद्यन्त इति, उत्पादोद्वर्त्तनाऽधिकारादिदमाह नेरइए इत्यादि, आइड्डीए त्ति नेश्वरादिप्रभावेणेत्यर्थः सूत्रम् 687 कतिआयकम्मुण त्ति आत्मकृतकर्मणा ज्ञानावरणादिना आयप्पओगेणं ति आत्मव्यापारेण // 3-8 // // 686 // उत्पादाधिकारा- संचितादि दिदमाह 9 नेरइया णं भंते! किं कतिसंचिया अकतिसंचिया अव्वत्तगसंचिया?,गोयमा! नेरइया कति वि अकति वि अव्व०वि, से के ण जाव अव्वत्तगसंचया?, गोयमा! जे णं ने० संखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं ने० कतिसंचिया जे णं ने० असंखेज्जएणं पवेसएणं पविसंति ते णं ने० अकतिसंचिया, जेणं ने एक्कएणं पवेसएणं पविसंति तेणं ने अव्वत्तगसंचिया, से तेणटेणं गोयमा! जाव अव्व०वि, एवं जाव थणिय०, 10 पुढविक्काइयाणं पुच्छा, गोयमा! पुढविकाइया नोकइसंचिया अकइसंचिया नो अव्वत्तगसं०, से केणटेणं एवं वुच्चइ जाव नो अव्वत्तगसंचिया?, गोयमा! पुढ० असंखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति से तेणटेणं जाव नो अव्वत्तगसंचया, एवं जाव वणस्स०, बेंदिया जाव वेमाणि. जहा ने०, 11 सिद्धाणं पुच्छा, गोयमा! सिद्धा कतिसं० नो अकतिसं० अव्वत्तगसंचियावि, सेकेणढे० जाव अवत्तगसंचियावि?,गो०! जेणं सिद्धा संखेजएणं पवेणं पविसंति तेणं सिद्धा कतिसंचिया 8 // 1326 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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