________________ हता गोयमा! असई अदुवा' शेषं तु लिखितमेवास्त इति // 657 // एकोनविंशतितमशते षष्ठः // 19-6 // श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ | // 1282 // 19 शतके उद्देशक: 7 सूत्रम् 658 देवावासाः ॥एकोनविंशशतके सप्तमोद्देशकः॥ षष्ठोद्देशके द्वीपसमुद्राउक्तास्तेच देवावासा इति देवावासाधिकारादसुरकुमाराद्यावासाः सप्तमे प्ररूप्यन्त इत्येवंसम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्रं केवतिया णं भंते! असुरकुमारभवणावाससयसहस्सा प०?, गोयमा! चउसडिं अकु०भवणावाससयसहस्सा प०, 2 ते णं भंते! किंमया प०?, गोयमा! सव्वरयणामया अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा, तत्थ णं बहवे जीवा यपोग्गला यवक्कमंति विउक्कमंति चयंति उववजंति सासयाणं ते भवणा दवट्ठयाए वन्नपज्जवेहिं जाव फासपज्जवेहिं असासया, एवं जाव थणियकुमारावासा, 3 के० णंभंते! वाणमंतरभोमेज्जनगरावाससयसहस्सा प०?, गोयमा! असंखेज्जा वाणमंतरभोमेजनगरावाससयसहस्सा प०, 4 तेणं भंते! किंमया प०? सेसंतंचेव, 5 के० णं भंते! जो विश्वाससयसहस्सा? पुच्छा, गोयमा! असंखेजा जो विश्वाससयसहस्सा प०,६ ते णं भंते! किंमया प०?, गोयमा! सव्वफालिहामया अच्छा, सेसं तं चेव, 7 सोहम्मे णं भंते! कप्पे के० विमाणावाससयसहस्सा प०?, गोयमा! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा, 8 ते णं भंते! किंमया प०?, गोयमा! सव्वरयणामया अच्छा सेसं तं चेव जाव अणुत्तरविमाणा, नवरंजाणेयव्वा जत्थ जत्तेया भवणा विमाणा वा / सेवं भंते! रत्ति॥सूत्रम् 658 // 19-7 // केवइया ण मित्यादि, भोमेज्जनगर त्ति भूमेरन्तर्भवानि भौमेयकानि तानि च तानि नगराणि चेति विग्रहः सव्वफालिहामय त्ति सर्वस्फटिकमयाः॥ 3,6 / / 658 // एकोनविंशतितमशते सप्तमः // 19-7 // // 1282 //