________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभयवृत्तियुतम् 18 शतके उद्देशकः 7 सूत्रम् 633 कौपध्याद्याः भाग-३ // 1248 // रायगिहे इत्यादि, जक्खाएसेणं आइस्सइ त्ति देवावेशेन 'आविश्यते' अधिष्ठीयत इति, नो खल्वि त्यादि, नो खलु केवली यक्षावेशेनाविश्यतेऽनन्तवीर्यत्वात्तस्य, अण्णातिठेत्ति अन्याविष्टः परवशीकृतः॥१॥॥६३२।।सत्यादिभाषाद्वयंच भाषमाणः केवल्युपधिपरिग्रहप्रणिधानादिकं विचित्रं वस्तु भाषत इति तद्दर्शनार्थमाह 2 कतिविहे णं भंते! उवही पण्णत्ते?, गोयमा! तिविहे उ० प०, तं० कम्मोवही सरीरो० बाहिरभंडमत्तोवगरणो०, 3 नेरइयाणं भंते! पुच्छा, गोयमा! दुविहे उ०प०० कम्मो० यसरीरो० य, सेसाणं तिविहा उ०प० एगिदियवज्जाणंजाव वेमाणियाणं, एगिदियाणं दुविहे प० तंजहा- कम्मो० यसरीरो० य, 4 कतिविहे णं भंते! उवही प०?, गो० तिविहे उ०प० तंजहा-सच्चित्ते अचित्ते मीसए, एवं नेरइयाणवि, एवं निरवसेसं जाव वेमा०।५ कतिविहे णं भंते! परिग्गहे प०?, गोयमा! तिविहे परि०प०, तं० कम्मपरि० सरीरपरि० बाहिरगभंडमत्तोवगरणपरि०,६नेरइयाणं भंते! एवं जहा उवहिणा दो दंडगा भणिया तहा परि०वि दो दंडगा भाणियव्वा, (ग्रन्थाग्रं 11000)7 कइविहे णं भंते! पणिहाणे प०? गोयमा! तिविहे पणि० प०, तं० मणपणिहाणे वइपणि कायपणि०, 8 नेरइयाणं भंते! कइविहे पणिहाणे प०, एवं चेव एवं जाव थणियकुमाराणं, 9 पुढविकाइयाणं पुच्छा, गोयमा! एगे कायपणिहाणे प०, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं, 10 बेइंदियाणं पुच्छा, गोयमा! दुविहे पणिहाणे प० तं० वइपणिहाणे य कायपणि० य, एवं जाव चउरिंदियाणं, सेसाणं तिविहेवि जाव वेमा०! 11 कतिविहे णं भंते! दुप्पणिहाणे प०?, गोयमा! तिविहे दुप्पणिहाणे प०, तं० मणदुप्पणिहाणे जहेव पणिहाणेणं दंडगो भणिओ तहेव दुप्पणिहाणेणवि भाणियव्वो! 12 कतिविहेणं भंते! सुप्पणिहाणे प०?, गोयमा! तिविहे सुप्पणि०प०, तंजहा- मणसुप्पणिहाणे वइसुप्पणि० कायसुप्पणि०,१३ मणुस्साणं भंते! कइविहे सुप्पणि०प०? एवं चेव जाव वेमा० सेवं भंते 2 जाव विहरति / तएणं समणे भगवं महावीरे जाव बहिया जणवयविहारं विहरड़ // सूत्रम् 633 // // 1248 //