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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1196 // कइविहे ण मित्यादि, ओहीपयं ति प्रज्ञापनायास्त्रयस्त्रिंशत्तमम्, तच्चैवं- 'तंजहा- भवपञ्चइया खओवसमिया य, दोण्हं भवपच्चइया, तंजहा- देवाण य नेरइयाण य, दोण्हं खओवसमिया, तंजहा- माणुस्साणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण य, इत्यादीति // 1 // // 588 // षोडशशते दशमः // 16-10 // 16 शतके उद्देशकः 11 द्वीपकुमारा: उद्देशक: 12-13-14 सूत्रम् 589 उदधिदिक् स्तनिताः ॥षोडशशतके 11-14 उद्देशकः॥ दशमेऽवधिरुक्तः, एकादशे त्ववधिमद्विशेष उच्यत इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रं १दीवकुमाराणं भंते! सव्वेसमाहारा सव्वे समुस्सासनिस्सासा?, णोतिणटेसमटे, एवं जहापढमसए बितियउद्देसए दीवकुमाराणं वत्तव्वया तहेव जावसमाउया समु०नि०।२ दीवकुमाराणं भंते! कति लेस्साओ प०?, गोयमा! चत्तारिले०प०, तंजहा- कण्हलेस्सा जाव तेउ० / 3 एएसिणंभंते! दीवकु० कण्हलेस्साणंजाव तेउलेस्साण यकयरे 2 हिंतोजाव विसेसाहियावा?, गोयमा! सव्वत्थोवा दीवकुमारा तेउलेस्सा काउलेस्सा असंखेज्जगुणा नील० विसे० कण्ह० विसे०। 4 एएसि णं भंते! दीवकु० कण्हलेसाणं जाव तेऊलेस्साण यकयरे 2 हिंतो अप्पड्डिया वा महड्डिया वा?, गोयमा! कण्हलेस्साहितो नीललेस्साम० जाव सव्वम० तेउ० / सेवं भंते! 2 जाव वि०॥ उदहिकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा० एवं चेव, सेवं०॥ 16-12 // एवं दिसाकुमारावि // 16-13 // एवं थणियकुमाराऽवि, सेवं भंते २जाव वि०॥सूत्रम् 589 / / सोलसमं सयं समत्तं / / 16-14 // 'दीवे'त्यादि।। एवमन्यदप्युद्देशकत्रयं पाठयितव्यमिति // 589 // 16-(11-14) / // 1108 196 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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