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________________ १४शतके उद्देशक:४ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1063 // शेषसूत्रातिदेशायाह, एवं जहा जीवाभिगम इत्यादि, जीवाभिगमोक्तानि (उ०१-३ प०८९-१२९) चैतानि विंशतिः पदानि, तद्यथा पोग्गलपरिणामं 1 वेयणाइ 2 लेसाइ 3 नामगोए य 4/ अरई 5 भए य 6 सोगे 7 खुहा 8 पिवासा य 9 वाही य 10 // 1 // उस्सासे 11 अणुतावे 12 कोहे 13 माणे य 14 माय 15 लोभे य 16 / चत्तारि य सन्नाओ 20 नेरइयाणं परीणामे // 2 // इति, तत्र चाद्यपदद्वयस्याभिलापोदर्शित एव,शेषाणि त्वष्टादशाऽऽद्यपदद्वयाभिलापेनाध्येयानीति॥५०९॥चतुर्दशशते तृतीयः॥१४ पुद्रला 83 // धिकारः। सूत्रम् 510 अतीतानागतवर्तमानकालपरमाणुस्कन्धयोरेक भिन्नसमययो कानेकपरिणामभवनप्रश्नाः / ॥चतुर्दशशतके चतुर्थोद्देशकः।। तृतीयोद्देशके नारकाणां पुद्गलपरिणाम उक्त इति, चतुर्थोद्देशकेऽपि पुद्गलपरिणामविशेष एवोच्यत इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम् १एसणं भंते! पोग्गले तीतमणतंसासयं समयंलुक्खी समयं अलुक्खी समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा?, पुट्विं च णं करणेणं अणेगवन्नं अणेगरूवं परिणामं परिणमति?, अह से परिणामे निजिन्ने भवति तओ पच्छा एगवन्ने एगरूवे सिया?, हंता गोयमा! एस णं पोग्गले तीते तं चेव जाव एगरूवे सिया॥२ एस णं भंते! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं? एवं चेव , एवं अणागयमणंतंपि॥३ एसणंभंते! खंधे तीतमणतं? एवं चेवखंधेवि जहा पोग्गले ॥सूत्रम् 510 // 1 एस णं भंते! इत्यादि, इह पुनरुद्देशकार्थसङ्ग्रहगाथा क्वचिद् दृश्यते, सा चेयं पोग्गल 1 खंधे 2 जीवे 3 परमाणू 4 सासए य 5 चरमे य। दुविहे खलु परिणामे अज्जीवाणं च जीवाणं 6 // 1 // अस्याश्चार्थ उद्देशकार्थाधिगमावगम्य एवेति, पुग्गले त्ति पुद्गलः परमाणुः स्कन्धरूपश्च, तीतमणंतं सासयं समयं ति विभक्तिपरिणामादतीतेऽनन्ते अपरिमाणत्वात्, शाश्वतेऽक्षयत्वात्, समये // 1063 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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