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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 1049 // ॥अथ चतुर्दशंशतकम्॥ ॥चतुर्दशशतके प्रथमोद्देशकः॥ व्याख्यातं विचित्रार्थ त्रयोदशं शतम्, अथ विचित्रार्थमेव क्रमायातं चतुर्दशमारभ्यते, तत्र च दशोद्देशकास्तत्सङ्ग्रहगाथा चेयम् १चर 1 उम्माद 2 सरीरे 3 पोग्गल 4 अगणी 5 तहा किमाहारे 6 / संसिट्ठ 7 मंतरे खलु 8 अणगारे 9 केवली चेव 10 // 1 // 2 रायगिहे जाव एवं व०- अणगारेणं भंते ! भावियप्पा चरमं देवावासंवीतिकंते परमं देवावासमसंपत्ते एत्थ णं अंतरा कालं करेज्जा तस्स णं भंते! कहिंगती कहिं उववाए प०?, गोयमा! जे से तत्थ परियस्सओतल्लेसा देवावासा तहिं तस्स उव०प०, से य तत्थ गए विराहेजा कम्मलेस्सामेव पडिमडइ, सेय तत्थ गए नो विराहेजा एयामेव लेस्सं उवसंपज्जित्ताणं वि०॥३ अणगारेणंभंते! भावियप्पा चरमं असुरकुमारावासं वीति परमअसुरकुमारा० एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारावासंजोइसियावासं एवं वेमाणियावासं जाव विहरइ / / सूत्रम् 500 // 4 नेरइयाणं भंते! कहं सीहा गती कहं सीहे गतिविसए प०?, गोयमा! से जहानामए- केइ पुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जाव निउणसिप्पोवगए आउट्टियं बाहं पसारेज्जा पसारियं वा बाहं आउंटेजा विक्खिण्णं वा मुढेि साहरेजा साहरियं वा मुहिँ विक्खिरज्जा उन्निमिसियं वा अच्छिं निम्मिसेज्जा निम्मिसियं वा अच्छिं उम्मिसेजा, भवे एयारूवे?, णो तिणढे समढे, नेरइया णं एगसमएण वा दुसमएणवा तिसमएणवा विग्गहेणं उववखंति, नेरइयाणंगोयमा! तहासीहा गती तहासीहेगतिविसएप० एवंजाववेमाणियाणं, नवरं एगिदियाणंचउसमइए विग्गहे भाणियव्वे / सेसंतंचेव ॥सूत्रम् 501 // 14 शतके उद्देशकः१ चरमशब्दोपलक्षिताधिकारः। सूत्रम् 500 चरमदेववासव्यतिक्रान्तपरमदेववासाप्राप्ताध्यवसायभावितात्माऽनगारस्यगत्युत्पादप्रश्नाः / सूत्रम् 501 नरकशीघ्रगति प्रश्नदृष्टान्तादि। // 1049 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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