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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-२ // 1016 // 13 शतके उद्देशकः४ नरकपृथिव्यधिकारः। सूत्रम् 483 तिन्निभंते! पोग्गलत्थिकायपएसा के० धम्मत्थि०?,ज० अट्ठहिं उ० सत्तरसहिं / एवं अहम्मत्थिकायपएसेहिवि।के० आगासत्थि०?, सत्तरसहिं, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स / एवं एएणं गमेणं भाणियव्वं जाव दस, नवरं जहन्नपदे दोन्नि पक्खिवियव्वा उक्कोसपए पंच / चत्तारि पोग्गलत्थिकायस्स०, जहन्नपए दसहिं उक्को० बावीसाए, पंच पुग्गल०, जह• बारसहिं उक्कोस० सत्तावीसाए, छ पोग्गल जह० चोद्दसहि उक्को. बत्तीसाए, सत्त पो. ज. सोलसहि उक्को सत्ततीसाए, अट्ठ पो० ज० अट्ठारसहिं उ० बायालीसाए, नव पो० ज० वीसाए उ० सीयालीसाए, दस ज० बावीसाए उ० बावन्नाए।आगासत्थिकायस्स सव्वत्थ उक्कोसगंभाणियव्वं // 26 संखेज्जा भंते! पोग्गलत्थिकायपएसा के० धम्मत्थिकायपएसेहिं पुट्ठा?, जहन्नपदे तेणेव संखेज्जएणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं उ० तेणेव संखेजएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं, के. अधम्मत्थिकायएहिं एवं चेव, के० आगासत्थिकाय० तेणेव संखेजएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं, केवइएहिं जीवत्थिकाय.?, अणंतेहिं, के० पोग्गलत्थिकाय.?, अणंतेहिं, के. अद्धासमएहिं?, सिय पुढे सिय नो पुढे जाव अणंतेहिं। 27 असंखेज्जा भंते! पोग्गलत्थिकायप्पएसा के० धम्मत्थि०?, जहन्नपए तेणेव असंखेजएणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं उक्को० तेणेव असंखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं, सेसं जहा संखेजाणं जाव नियम अणंतेहिं / / 28 अणंता भंते! पोग्गलत्थिकायपएसा के० धम्मत्थिकाय०, एवं जहा असंखेज्जा तहा अणंतावि निरवसेसं // 29 एगे भंते! अद्धासमये केवतिएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे?, सत्तहिं, केवतिएहिं अहम्मत्थि?,एवं चेव, एवं आगासत्थिकाएहिवि, केवतिएहिंजीव.?, अणंतेहिं, एवंजाव अद्धासमएहिं॥३० धम्मत्थिकाएणंभंते! के० धम्मत्थिकायप्पएसेहिं पुढे?, नत्थि एक्केणवि, के० अधम्मत्थिकायप्पएसेहिं?, असंखेल्जेहिं,केवतिएहिं आगासत्थि०प०?, असंखेल्जेहिं, केवतिएहिंजीवत्थिकायपए०?,अणंतेहिं, के पोग्गलत्थिकायपएसेहिं?, अणंतेहि, के० अद्धासमएहिं?, सिय पुढेसिय नो पुढे, जइ पुढे नियमा अणंतेहिं / 31 अहम्मत्थिकारणं भंते! के० धम्मत्थिकाय.?, (अपूर्णम्) जीवैकप्रदेश पुद्रलैकयादिसङ्ग्यातासङ्ख्यातानन्तप्रदेशानां धर्मादिभिः कालैकसमयस्य धर्मादिभिश्वसहस्पर्शनाप्रश्नाः। // 1016 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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